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ने मिनाहचरिउ
[१८३३]
इय विचिंतिर कुगइ - इ-विणिवायजाय हियय-संघट्ट धारिणि ।
जंतु - जाय-मण- खेय- कारिणि ॥ परिचितिउण सढेण ।
भय-विहर- मानस-पसर पंचत्तह पत्त जयअहमा एस व मरउ इय
आणिवि वीहिहिं ओड्डविय वसुमइ तिण सुहडेण ॥
[१८३४]
तयणु आगि वसिण पवरु
कुल जाइ वि वालियह afe aftण घणावहिण किंचि - वि मुल्लु पयच्छिउण सन्घरि नीय सा वाल । नयनामुवि अ-कत तहिं चिट्ठर गुणिहि विसाल ||
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परिमुणेवि विज्जाणुहाविण । तर्हि पसि संपत्त-मित्तिण ॥
[१८३५]
दि सिट्टिण धूय बुद्धीए
तह मूळा नामियहि निय-पिया पुत्ति त अप्पिय । तीए वि-हु सच्चविय धूय-मइण सा निव्त्रियप्पिय ॥ लोम्मि विवित्थरिय निरु पसरिय-गुरु-गुण-माल । अभिहाणिण वणि- वर- करण एह ज चंदणवाल ॥
[१८३६]
कमिण तहि गुण-गरिम अ-सहंत
गिरि - गरुयर-दोस-भरअ- नियच्छिर अमरिसिण अह अन्न मज्झहि गउ अ- नियंतर पुणु माणुसु वि चिट्ठा चंचल- दिट्ठि ॥
१८३६ १. क. किंमिण (?).
मूल मूल छिड्डई पलोय । गमइ दियह हियएण सोयइ || भवणि धणावहु सिद्धि |
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[ १८३३
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