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१८३२ ]
सत्तमभवि संखवृत्तंति महावीरचरिउ
[१८२९]
अह सयाणिय- निविण विन्नाय - भणिउ
तंतिण निय-सचिबु जह चिट्ठ उग्गु तवु गोयर- चरियहं पइ दियहु
न- उणो केण वि कारणिण कत्थ-वि भिक्ख गइ ||
भद्द किं तई न याणिउ । विरु नाहु तिहुयण - वखाणिउ ॥ पडि-भवणं पि भमे ।
[१८३०]
एम् अइगय मास चत्तारि
इय कह-वि तहुज्जमसु जेण भिक्ख गिण्इ सामिउ । अह सचिव वयणु अणुसरिवि लोउ गुरु-भत्ति - भाविउ ॥ गाहरु नच्चिरु पलविरु वि स-मुह परम्मुहि काइ । ढोes दाणु अणेग-विहु न उ सामिहि पडिहार ||
इओ य -
दहिवाहण - नाम उ
तेसिं पि-हु धूय इम अवरावसरि सयाणिरण
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[१८३१]
चंपय-नयरिहिं आसि नर-नाहु
धारिणित्ति पुणु तस्सु भारिय । वसुमइति गुण - रयण-सारिय ॥ भग्गु सु स-पुर-नरे ।
धारिणि देवि वि दुहिय-जय गेण्हइ सुहड-विसे ॥
[१८३२]
भणइ पुणु जण-मज्झि जह एग
इह होस मह दइय
ता चिंतइ दुइ-भरियजं खंडिय-सीलहं दलिय - कुल - मेरा लज्जाहं । को गुणु पाविय-जीवियहं निगुणहं कुल - विलयाहं ॥
इयर कह-वि पुणु विविकणिस्सरं । हियय देवि - धिसि हइय जगि हउं ॥
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