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४१० नेमिनाहचरिउ
[ १८२५ [१८२५]
अह पहुत्तउ सक्कु सोहम्मि चमरिंदु वि साम-मुहु नियय-ठाणि संप कहमवि । विहरंतु कोसंवियहिं पुरिहिं पत्तु सि वीर-नाहु वि ॥ तं परिवालइ सु-दढ-वल निवइ सयाणिय- [मु । तसु वि मिगावइ नाम पिय आसि सयल-गुण बामु ॥
[१८२६]
तह तिगुत्तय-नामु सचिविंदु नंदा उण दइय तसु संति ताई सयलाई नेहिण । कुव्वंति निरंतर वि विमल-धम्म-कम्माइं भाविण ॥ तत्थ य जय-सामिण ठिइण गहिउ सिद्धि-सुह-हेउ । दव्व-खेत्त-कालाइयहं विसइ अभिग्गहु एउ ॥
[१८२७]
पोस-मासहं कसिण-पडिवयह दव्वम्मि कुमास मह सुप्प-कोणि लभंत कप्पर्हि । खित्तम्मि उ उम्बरहं मज्झि ठाहि न-वि ठविय-चलणि हिं ।। कालम्मि उ भिक्खायरिहिं निय-निय-ठाण-ठिएहिं । भावम्मि उ रोयंतियहिं उत्तरिइहि केसे हि ॥
[१८२८]
दासि-भाविण ठियहिं कह-कह-वि उवलद्ध सयं पि निव- कन्नयाए दिजंत गेण्हहुँ । अन्नह उण वहुयरु वि कालु जाव तब-कम्मि चिट्ठहुँ । इय चिंतंतु अ-लद्धिउ वि गोयर-चरिय भमेइ । विविह-परीसह-सहण-रुइ मास चियारि गमेइ ॥
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