Book Title: Neminahacariya Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 421
________________ ४०८ तयणु सामाणिय- पमुह- सुरसुर-तरुणिउ एहि पुणु पडिवज्जहुँ दइयत्तणिण स- मइण चमरोवरि-ठिइण नेमिनाeafte [१८१७] रोसारुण - लोयणिण कर-कय- फरिहाउहिण अरि अरि सक्क तुहुं अज्जु [१८१८] इय स-निठुर वयण निसुणत रोसारुण - नयण-दल अरि चमरय दिट्टि पहु किह इह आगंतूण तुहुं सक्क-सुहड साडोवु जंपहिं । मुयसु जा न पहु-भिच्च कुपर्हि ॥ मरहि अ-पूरइ कालि । अज्ज - वि वलिउण हंत लहु लहु पविससु पायालि || Jain Education International 2010_05 [१८१९] तयणु भिउडिय - भाल- वट्टेण सहिउ सरसु निय- इट्ठु को वि-हु । एहि तुझ लच्छी विमई विहु ॥ जिह पावति सुहाई । तई पुणु एयहं काई ॥ इगु पउठविरिण वे यह इगु सुर - गिरि-चूलाए । सक्क-सुहड सयलि विखणिण परमुहिकय हेलाए || भवण - वइ. सोहम्म-सुराहिवरतयणतरु रिउ दुसहिण पसरिय- पहिण इय जंपेवि विमुक्कु तमु कंपमाण - अंगेण चमरिण । सक्क-सुरिहि सह विहिय- समरिण || [१८२० ] ता विसप्पिर दप्पु चमरिंदु [ १८१७ err - देउ समुइ समुहउ । अहम अरिरि रे चमर नियउ || मह-सत्थिण एएण । समुहु वज्जु सक्केण ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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