Book Title: Neminahacariya Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 416
________________ १८००] ४०३ सत्तमभवि संखवुत्तंति महावीरचरिउ [१७९७] भुवण-बंधु वि पत्तु दढ-भूमि पेढाल-नयरोववणि वेइयम्मि पोलास-नामगि । कय-अट्ठम-भत्त-तवु ठाइ पडिम तहिं एग-राइगि ॥ अह पहु-चरिय-चमक्कियउ सहर भणइ सुरिंदु । अहह नियह सुर वीर-जिणु पणयामर-धरणिंदु ॥ [१७९८] एग-पुग्गलि निसिय-निय-नयणु सुर-सिहरि-थिरेग-मणु लंव-वाहु नमिरंगु किंचि-वि । तियसासुर-सामिहिं वि निमिस-मित्तु तीरइ न खंचिति ॥ अह अ-भविउ संगमय-सुरु सुरवइ सविहि वइछु । एहु अ-सदहमाणु फुड जंपइ चित्ति पउट्ठ ॥ [१७९९] अहह जायउ एगु सामित्तु किं वहुएहिं वि गुणिहिं जसु वसेण जुत्तु व अजुत्तु वि। पडिहासइ जणि जमिह को णु वीरु जो मणुय-मेत्तु वि ॥ इंदेहिं वि स-सुरासुरिहिं तीरइ न वि चालेउ । अहवा संसउ हरिसु हउं एयह माणु मलेउ ॥ । [१८००] ___ इय स-निठुरु भणिरु सुर-वरिण पडिसिठ्ठ वि संगमउ जाइ सविहि सिरि-वीर-नाहह । पयडेइ य दुसह उवसग्ग-बग्ग तसु लंव-वाहह । पढमु भयंकरु भरिय-धरु उधुंधुलिय दसासु । उपरि विउबइ भग्ग-तरु धूलि-वरिसु सु हयासु ॥ १७९८. १. सुग्गलि. Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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