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सत्तमभवि संखवुत्तंति महावीरचरिउ
[१७९७]
भुवण-बंधु वि पत्तु दढ-भूमि पेढाल-नयरोववणि वेइयम्मि पोलास-नामगि । कय-अट्ठम-भत्त-तवु ठाइ पडिम तहिं एग-राइगि ॥ अह पहु-चरिय-चमक्कियउ सहर भणइ सुरिंदु । अहह नियह सुर वीर-जिणु पणयामर-धरणिंदु ॥
[१७९८]
एग-पुग्गलि निसिय-निय-नयणु सुर-सिहरि-थिरेग-मणु लंव-वाहु नमिरंगु किंचि-वि । तियसासुर-सामिहिं वि निमिस-मित्तु तीरइ न खंचिति ॥ अह अ-भविउ संगमय-सुरु सुरवइ सविहि वइछु । एहु अ-सदहमाणु फुड जंपइ चित्ति पउट्ठ ॥
[१७९९]
अहह जायउ एगु सामित्तु किं वहुएहिं वि गुणिहिं जसु वसेण जुत्तु व अजुत्तु वि। पडिहासइ जणि जमिह को णु वीरु जो मणुय-मेत्तु वि ॥ इंदेहिं वि स-सुरासुरिहिं तीरइ न वि चालेउ । अहवा संसउ हरिसु हउं एयह माणु मलेउ ॥
। [१८००] ___ इय स-निठुरु भणिरु सुर-वरिण पडिसिठ्ठ वि संगमउ जाइ सविहि सिरि-वीर-नाहह । पयडेइ य दुसह उवसग्ग-बग्ग तसु लंव-वाहह । पढमु भयंकरु भरिय-धरु उधुंधुलिय दसासु । उपरि विउबइ भग्ग-तरु धूलि-वरिसु सु हयासु ॥ १७९८. १. सुग्गलि.
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