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नेमिनाहचरिउ
[ १८०१
[१८०१]
मेरु-सिहरि व सामि-सालो वि अ-विकंपिर-मणु मुणिवि वज्ज-तुंड-कीडियहिं बहुयहिं । घेइल्ल-विच्छय-नउल- डंस-मसग-भूसंग-पिसाइहिं ॥ कुंभि-सिरी सिव-वणमहिस- सीह-किसोर-सएहिं । खर-मारुय-विगराल-विग- पमुहेहिं वि भयएहि ॥
[१८०२]
करुण-विलविर-निवइ-सिद्धत्थ. तिसलाण उवदंसणिण अमर-तरुणि-कय-गेय-नट्टिण । अवरेण वि इयर-जण- हियय-हरिण उवसग्ग-वग्गिण ॥ चालिज्जंतु वि जय-पहुहु झाणह चलिउ न चित्तु । अह तियसाहमु संगमउ गरुय-पओसिण दित्तु ।
[१८०३]
गयण-मग्गह गरुय-तेयड्ढ पसरंत-धारा-सहसु भार-सहस-भरु चक्कु मिल्लइ । ता वहिरिय-दिसि विवरु खुहिउ जलहि महि-वलउ डोल्लइ ॥ भुवण-भयंकरि चक्कि तहिं सीस-उवरि पडियम्मि । जाणु-मेत्तु जय-बंधवु वि खुत्तउ धरणि-तलम्मि ॥
[१८०४]
तह-वि अ-चलिर-चित्ति सामिम्मि वियलंत-तारा-नियरु झीण-संझु रवि उदउ पयडइ । सामी वि-हु निय-अवहि- नाण-वलिण रयणि त्ति जाणइ ।। चिठेइ य धरणियल-थिर- निय-पडिमहं पडिवन्नु । तयणंतर संगम-तियसु भणइ सहावावन्नु ।
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