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८०८] सत्तमवि संखवुत्तति महावीरचरिउ ___४०५
[१८०५]
तुठु जिणवर तुज्झ हउं भुवणदुलहो वि मग्गेसु वरु करिवि वीस अइ-दुसह एरिस । छम्मासा जाव अवरे वि काउ उवसग्ग विसरिस ।। सामिहि जलहि-गहीरु मणु मुणिवि मोक्ख-कय-लक्खु । सुर-मंदिरि इंदह पुरउ गउ संगमउ विलक्खु ॥
[१८०६]
किंतु सक्किण फुरिय-कोवेण संजाय-परम्मुहिण भणिउ इयर-तियसाई सम्मुह । जह – अ-निएयव्वु इहु पाव-चरिउ संगमउ दुम्मुहु ।। संक महारी य वि न किय एत्तिउ कालु इमेण । उवसग्गंतिण भुवण-पहु दुसहुवसग्ग-सएण ॥
[१८०७]
जइ वि मंदरु पवण-कलियाहिं चालिज्जइ जइ जलहि मडह-वाल-चुलुगिहि मविज्जइ । रवि उग्गइ पच्छिमहं जइ-वि जइ-वि धर करि धरिज्जइ ॥ तह-वि न तिहुयण-सिरि-तिलउ नियय-झाण-मग्गस्सु । चालिज्जइ स-नरामरिण सुरवइणा वि अवस्सु ॥
[१८०८]
इय भणंतह तियस-नाहस्सु कोवानल-दड्ढ-तणु . झीण-पुण्णु निय-देवि-सहियउ । सोहम्मह चालियउ गंतु मेरु-चूलाए रहियउ ॥ जय-बंधु वि वीयम्मि दिणि वग्गवाल-थेरीए । पडिलाहिउ हरिसिय-मणए दोसीणय-खीरीए ॥ १८०५. ६. क गहीर.
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