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नेमिनाहचरित [१८०९]
जाय कंचण-वुट्ठि तग्गेहि भयवं पि अहक्कमिण सुंसुमार-वर-नयर-बाहिहिं । उस्सम्गिण ठियउ वण- मज्झि पडिम उब्भिउ विसाइहिं ॥ तत्थ ठियस्स य जय-पहुहु हुय जह चमरुप्पत्ति ।
लेसिण साहितस्सु मह तह परिभावहु चित्ति ।। तहा हि
[१८१०]
इह वि भारह-खित्ति वेभालअभिहाणिण विस्सुयइ देसि आसि पूरणु गहावइ । सो मज्झिम-वइ करिवि उग्गु वाल-तवु हुउ असुर-वइ । चमर-नामु भवाणिदु अह कय-कायव्य-विसेसु । सीहासणि उवविसिवि जगु अवहिण नियइ असेसु ॥
[१८११]
तयणु पेक्खिवि सीस-उवरिम्मि सोहम्मिय-सुरवइहि फुरिय-तेय-भरु सोह-आसणु । साडोवु समुल्लवइ चमर-इंदु आसन सुर-गणु ॥ नणु इंदाहमु को णु इहु निय-सिरि गब्बु वहेइ । जा मज्झ वि सीसह उवरि माणु मलंतु वसेई ॥
[१८१२]
हवउ एहु जि नाहु सुर-असुरमज्झम्मि अहवा हउं. किण वि एग-पक्खम्मि हणियइ । पडियारि एगम्मि जि न माई दोणि खग्ग त्ति भणियइ ॥ तयणंतर पभण हिं असुर नाह न भण्णइ एहु । सासय-ठिइ इह इय इहु चि निय-सुकयह फलु लेउ । १८१२. ५. क. उग्ग
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