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सत्तमवि संखघुत्तंति महावीरचरिउ
[१८१३]
न-उण केण-वि कसु वि सुकयाई तीरंति विहलेउ इय किमिह नाह अट्ठाण-कोविण । इय जंपिर पुणु पुणु वि नियय-असुर अवगणिय चमरिण । ता कुंडल-म उडाहरणु उरयल-विलुलिर-हारु । चमरु गंतु सामिहि पुरउ कय-असरिस-सिंगारु ॥
[१८१४]
नमिवि सायरु भणइ - जय-नाह तुह चलण सरण्णु मह संपईए आवइ-विसेसि वि । सरि-सलिलहं ठाणु नणु कवणु अन्नु जल-निहि विउज्झिवि ।। इय भणिऊण जिणाहिवइ- पय-पउमहं निस्साए । वाहु-विइज्जु सु असुर-वइ विनडिउ स-दुरासाए ॥
[१८१५]
गवल-कज्जल-कंति-विगरालसव्वंगु जोयणहं सय सहस-माणु निय-तणु विउविवि । तइलोय-भयावणिय- दह-उछ करि फरिह घेत्तु वि ॥ गज्जइ विहसइ उल्ललइ धरणिहि दलइ चवेड ।
कुणइ य चलणिहि ददरउ पाडइ मंदिर-मेड ॥ अवि य -
[१८१६]
नदइ सीहु व करि व गडयडइ हेसेइ तुरंगमु व गयणि विज्जु-पुंजु व अवक्कइ । विक्खोहइ धरणियल गयण-वासि-जण-मणु धवक्कइ । कर-अंगुठ्ठय-अंगुलिहिं मुह-मंकडिउ कुणंतु । पत्तु सु सोहम्मिय-सहह तियस-तरुणि भेसंतु ॥
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