Book Title: Neminahacariya Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 399
________________ ३८६ नेमिनाहचरिउ [ १७१८] तह पज्जुवासियव्वा संतो खल-संगमो वि मोयव्वो । रक्खेयव्वा सव्वे व जंतुणो स-तणु-पीड व्व ॥ [१७१९] मिउ-महुर निउण कज्जावडिय परित्थोव-सच्च-गंभीरं । भासेयन्वं वयणं सुह करणं स पर पक्खे ॥ [१७२०] छिवियन्वो न करेण वि तय विस-सप्पो व्व कह-वि पर-विहवो । सुमरण-संकष्पब्भत्थणेहिं रमणी वि मोयव्वा ॥ [१७२१] वाहिरंतरंग-संग च्चाओ सव्वष्पणा विहेयव्वो । afroat निरुम-मुणि- वेसो नीसेस - सुह- हेऊ ॥ [१७२२] नियय - सरीरं जावेयव्वं : जा-जीवमवि पयत्तेण । नत्र-कोडि-स्रुद्ध-आहार-वत्थ- सेज्जाइ-वत्थूर्हि ॥ [१७२३] अनियय-विहारमवलंवेऊणं विहरियव्वमवणीए । निद्दा- विगह पमायाण वि दायव्वो न अवयासो । अवि य [१७२४] मुच्छेयव्वं कोमल-फरिसेसु न न-विय निवम-रसेसु । मुज्झेयव्वं न सुरहि-गंधेसु न पत्रर-रूवेसु ॥ - [१७२५] नाहिलसेयव्वा कमणीया सदा विवेय-कलिएहिं | उब्वे यव्वमवि नो कक्खड - सद्दे कु-रूवे य । [१७२६] अ-मणुन्न-रसा निंदेयव्त्रा नो न विय दुरभि-गंधाय । गरयव्वा फरसा विरूव-रूवा न कइया - वि । [१७२७] किं बहुएणं सोहेयव्वो अप्पा विसुज्झमाणाहिं । वारसहिं भावणाहिं अणिच्चयासरणयाईहिं ॥ १७१८. २. मोत्तब्वो. १७२० ३. क. संकम्भत्थ. [ १७१८ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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