Book Title: Neminahacariya Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 410
________________ १७७६ ] पाराविउ भुवण-पहु हुय कंचन बुद्धि घरि आदिय सुर-असुर निव वीर जिदिह तारिसइ सत्तमभवि संखवृत्तंति महाबीरचरिउ [१७७३] तयणु वहुलि [१७७४] ae aids farह उवसग्ग परिसीलिरु उग्गु तवु निम्ममत्त - सिरि-तिलउ सामिउ । अ-गामि गउ वसह - गामिउ ॥ तसु तावस-आसमह जण-1 -निहणण- लक्खस्सु । संझ पुणु उस्सग्गि ठिउ भुवण भयंकरि आययणि मूलपाणि- जक्खस्सु ॥ हा हि तुट्ठ-हियएण पायसेण निरु सुरहि-महुरिण । गणि पहय दुंदुहि सुरोहिण || निवह जयम्मि अ-से तहिं पारणय-विसेसि ॥ । नणु एस कहं नु मह पडिसिद्ध विपुर-जणिण इय चिंतंत सुर - सिहरि - सूलपाणि पयडर पहुहु Jain Education International 2010_05 [१७७५] सूलपाणि वि रुठु पहु-उवरि भवणि रयणि-अवसर पहुत्तउ । तमिह अज्ज मारिसु निरुत्तर || थिरह तिजय-तिलयस्सु । दुसहुवसग्ग- सहस्सु ॥ [१७७६ ] जय भयावह - त्रिसम-दाढालु fro विवरिय मुह- कुहरु कणय - पिंगु केसर- करालउ । गुंजारुण - नयणु खर- नहर-पाणि रोसिण विसालउ || पुच्छच्छोड - पडिरविण भरिय विवरु गुरु-जी हु । जय-पहु-तणु - विद्यावयरु सुरिण विउव्विउ सीहु ॥ १७७५. ४. क. पडिदि ९. सहुव For Private & Personal Use Only ३९७ www.jainelibrary.org

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