Book Title: Neminahacariya Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 378
________________ १६०६] सत्तमभवि संखवुत्तंतु [१६०३] तत्थ पुणु तसु कुमर-रयणस्सु कि-वि गच्छहिं तणु-वहिहिं पडिहि के-वि पुणु अद्ध-मग्गि वि । सुह-जोगिण के-वि पुणु ठंति कुमर-करयलि विलग्गिवि ।। तयणतरु कुमरो वि गुरु- रोसारुण-नयणिल्लु । आरोवइ अरि-दुद्धरिसु चाव-दंडु नियइल्लु ॥ [१६०४] __ अह कह-चि वि हणइ वाणेण वच्छ-स्थलि जह लहु वि दलिय-दप्प-माहप्प-वित्थरू । परिवियलिर-रुहिर-कय- गुरु-पवाह-निज्झरण-डुंगरु ।। गुरु-करुणारिह-मुह-कुहर- निग्गय-रसणा-दामु । खयरिंदाहमु धरणि-यलि पडिउ सु अ-गहिय-नाम् ॥ [१६०५] तयणु घिसि धिसि पाव-तरु फलिउ एयम्मि जम्मि वि इमह खयर-राय-अहमस्सु पेच्छहु । इय नहयलि उच्छलिय वाणि खयर-सुर-गणहं तहिं लहु ॥ इयरह पुणु पसरिय-जसह अ-मलिय-माण-धणस्सु । कुसुम-बुद्धि जय-जय-झुणि वि जाय उवरि कुमरस्सु ॥ [१६०६] किंतु कुमरिण जाय-करुणेण मणिसेहरु खयरवइ मुच्छ-विवसु निय-करिहिं घेप्पिणु । निग्गालिय-रुहिर-वर- ओसहीहि सज्जउ करेप्पिणु । भणिउ - महा-यस उद्विउण घेप्पिणु करि करवालु । जुझंतउ पडिवक्खियह दंससु अप्पु करालु ॥ १६०४. ८. क. खयरिंदह मुणि. ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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