Book Title: Neminahacariya Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 379
________________ [१६०७ ३६६ नेमिनाहचरिउ [१६०७] तयणु निरुवम-कुमर-गुण-गणिण संगहिय-माणस-पसरु खयर-राउ जंपइ -- महा-यस । का मज्झ धीरिम समरि तई समाणु विप्फुरिय-सिय-जस ।। जं तं तेत्तिउ मज्झ वलु तेत्तिय विज्ज-विसेस । लीलाए वि तई नर-रयण अहलीकय नीसेस ।। [१६०८] ____ असम धीरिम तुंगु गरिमत्तु अइ-गहिर गंभीरिम वि पत्त-सीम सवंग-चंगिम । जय-विम्हय-करु वयणु सुयण-हियय-सुहयर वियइढिम ॥ जं तत्तो चिय तुह तरुणि- रयणु एहु अणुरत्तु । सिविणि वि हंसि न अहिलसइ जमिह वलाउ निरुत्तु ॥ [१६०९] इय कुणंतिण नेहु अ-टाणि मई अप्पु विगोइयउं जणणि-जणय-सिय-कित्ति मलिणिय । हरिऊण रायाउरिण दुहि निहित्त जं चंद-वयणिय ।। इय गुरु-गुण-संदाणियउ तुह कुमार हउं भिच्चु । ता उप्पन्नइ कज्जि मई वावारेज्जसु निच्चु ।। [१६१०] एत्थ-अंतरि वलिय-मुह-कमल परिचितइ ससि-वयणि अहह एत्थ किं ते-वि जीवहिं । जहं कामिणि-गय-वइर वहरि-नियर गुण-गणु न दीवहिं ॥ कि-विथोवम्मि विनियय-गुणि होति पसिद्धि-पहाण । जं खारम्मि वि मयरहरि फुरइ कित्ति अ-समाण ॥ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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