Book Title: Neminahacariya Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 382
________________ १६२२ । सत्तमभवि संखवृत्तंतु [१६१९] ठिइण तत्थ य सत्तु-अभिभूय बहु-भेय खयराहिव आऊरि तिहुणु वि भुवण भहिय-पयात्र-भरसिरि- सिरिसेण- निवंगइण [१६२०] ता पवज्जिय- भिच्च भावेहिं गुण-रंजिय-माण सिर्दि बहु-विहिं खयराहिराइहिं । साणंदु कुमर-विडिय पाय- पूय-पणमंत काइहिं ॥ निय-निय - रायाउर - हियय निरुवम-गुण-रयणड्ढ । तत्थ सयंवर आणिउण वियरिय धूय वियट ॥ [१६२१] अह कुमारिण भणिय खयरिंद सवे जाव मई तरुणि रयणु जसमइ न परिणिय । ता कह-विन का-वि धुवु परिणियव्व तियसहं वि वालिय ॥ अह खयराहिव - नित्रहु मणिसेहर पमुहु स-धूउ । पवर - विमाणिहिं आरुहिवि कुमरह अग्गइ हूउ ॥ पत्थणेण साहज्जु देंतिण | छण-ससंक-निम्मलिण कित्तिण || अहरिय-स- सुर-नरेण । तेण संख- कुमरेण ॥ - [१६२२] संख-कुमरु वि तेसि वयणेण आरुaिय विमाण वरि संपत्तउ चंपय-पुरिहि तयणंतरु चंपाहिविण सहिण मे मच्च-वर Jain Education International 2010_05 अंव-धाइ जसमइ- समन्निउ । उवरि खयर - निव - निवह-वन्निउ ॥ अवगय-वृत्ते | तलवर - सामंतेण । १६२१. ६. क. ख. खयराहिवु. ४७ For Private & Personal Use Only ३६९ www.jainelibrary.org

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