Book Title: Neminahacariya Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 387
________________ ३७४ विदुरं तर सठिय वि ता मोह- पिसाय - हय [१६४१] जमिह मालइ - माल तव्वन्न नेमिनाहचरिउ मुग्गर- निस्स व मुहह जरहं विडंवण धुवु बुह परिगसिय- चंदण - रसह वज्र्जत-जर द्वियह अंग-भोग आहरण-विहि आयणिय- जिण-व -वयण- लघु [१६४२ ] सच्च - अंगि य गरुय-वलि -विवर परिवियलिय - वेयणिण Jain Education International 2010_05 मुद्ध- देसि दुल्लक्ख जायइ । मणहं कुसुम-संभोगु भावइ ॥ निरु गलंत पिक्कस्सु । सेवा तंबोलस्सु ॥ [१६४३] रसु न नज्जइ सम्मु जर वसिण परिसंडत - नीसेस छाय६ । वाय- उदय - कंपिरह कायह । मंडण - विहि वि किलेसु | कुणइ कु एहु असेसु || विवोहि पवाल-दलपउमारुण - पाणि मरुएस चि इय इयर - जण सयम नियंता तह - वि निरु १६४४. ७. क. भणहि. कप्पूरागुरु- पमुह अणुरज्जर - अविवेय- घण अ-मुणिय-चंगाचंग | reg विगोर्हि वप्पुडा जर जज्जर- सव्वंग ॥ जणिण अहह तत्थ वि सुहासय । सुरहि-त्-सत्थिवि हयासय ॥ [१६४४] अहह ससहर-वयणि हरिणच्छि अहर कणय - कलस - प्पओहर । कूब - नाहि - मंडल - मणोहर || वयणिण मुणहिं हयास | तरुणिहि वंधहि आस ॥ For Private & Personal Use Only [ १६४१ www.jainelibrary.org

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