Book Title: Neminahacariya Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 393
________________ ३८० नेमिनाहचरिउ [१६६९] दासत्तं पेसत्तं रंकत्तं पि-हु अणंतसो पत्तं । सत्तम-महि-सीमाई नारय-दुक्खाइं वि तहेव ॥६॥ [१६७०] किंतु न सुहेहिं तोसो न य निवेओ दुहेहिं संजाओ। मोह-विस-घारियाणं गलिय-विवेयाण जीवाण ॥७॥ [१६७१] एहि पि-हु पयाइं जय-स्सिरी-विसय-देह-सयणाई । जोव्वण-रज्ज-मुयाणि य सयलाई वि पंच-दियहाई ॥८॥ तहा हि - [१६७२] करि-कन्न-कयलि-पत्तोवमाउ अथिराओ राय-लच्छीओ! किपाग-फल-विवागा विसया खण-दिह-नहा य ॥९।। [१६७३] जस्स कए पावाई कीरंति सरीरगं पितं अथिरं । चिंतिज्जतं परमत्थओ य सव्वासुइट्टाणं ॥१०॥ [१६७४] संझा-समए एगम्मि पायवे वसिय-सउण-सरिसे सु । सयणेसु वि पडिवंधो केवल-मोह-प्फलो चेव ॥११॥ [१६७५] जं पुण विलास-विव्वोय-हास-लीला-मउक्करिस ठाणं । अणु-समयं पि-हु नर-वर तं पि जरा-रक्खसी गसइ ॥१२॥ [१६७६] चिंतिज्जतं रज्ज पि भ६ अइ-दीह-भव-फलं चेव । अहिमाण-मेत्त-सुक्खं वहु-दुक्खं इह वि जम्मम्मि ।१३।। [१६७७] पामा-कंडयण-सुहोवमाइं संसारियाण सुक्खाई। दुह-मूलाई तुच्छाई नूण विरसावसाणाई ॥१४॥ १६६९. १. क. रंकतं. १६७४. १. क ख. संज्झा . ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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