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नेमिनाहचरिउ [१६६९] दासत्तं पेसत्तं रंकत्तं पि-हु अणंतसो पत्तं ।
सत्तम-महि-सीमाई नारय-दुक्खाइं वि तहेव ॥६॥
[१६७०] किंतु न सुहेहिं तोसो न य निवेओ दुहेहिं संजाओ।
मोह-विस-घारियाणं गलिय-विवेयाण जीवाण ॥७॥
[१६७१] एहि पि-हु पयाइं जय-स्सिरी-विसय-देह-सयणाई ।
जोव्वण-रज्ज-मुयाणि य सयलाई वि पंच-दियहाई ॥८॥ तहा हि -
[१६७२] करि-कन्न-कयलि-पत्तोवमाउ अथिराओ राय-लच्छीओ!
किपाग-फल-विवागा विसया खण-दिह-नहा य ॥९।।
[१६७३] जस्स कए पावाई कीरंति सरीरगं पितं अथिरं ।
चिंतिज्जतं परमत्थओ य सव्वासुइट्टाणं ॥१०॥
[१६७४] संझा-समए एगम्मि पायवे वसिय-सउण-सरिसे सु ।
सयणेसु वि पडिवंधो केवल-मोह-प्फलो चेव ॥११॥
[१६७५] जं पुण विलास-विव्वोय-हास-लीला-मउक्करिस ठाणं ।
अणु-समयं पि-हु नर-वर तं पि जरा-रक्खसी गसइ ॥१२॥
[१६७६] चिंतिज्जतं रज्ज पि भ६ अइ-दीह-भव-फलं चेव ।
अहिमाण-मेत्त-सुक्खं वहु-दुक्खं इह वि जम्मम्मि ।१३।। [१६७७] पामा-कंडयण-सुहोवमाइं संसारियाण सुक्खाई।
दुह-मूलाई तुच्छाई नूण विरसावसाणाई ॥१४॥ १६६९. १. क. रंकतं.
१६७४. १. क ख. संज्झा .
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