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नेमिनाहचरिउ [१५०२] खण-मेत्तेण य पिययम-विओय-दुइ-जाय-हियय-संघट्टा ।
पत्ता पंचत्तं सा निस्सरणा सारसि वराइ ॥१५९।।
[१५०३] एत्थंतरम्मि अवर-तलेण विविणंतरेसु परिभमिरो ।
करुण-सरं कुरुलंतो अ-नियंतो भारियं निययं ॥१६०॥
[१५०४] तस्सेव महा-तरुणो उवरि-पएसम्मि आगो जा ता ।
नियइ गय-जीवियव्वं निय-दइयं महियले पडियं ॥१६१॥
[१५०५] करुण-सरं व सुइरं कुरुलंतो सो वि सारस-वराओ ।.
होऊण तीए सविहे पंचत्तं झत्ति पत्तो त्ति ॥१६२॥
[१५०६] अह एस मए कत्थ-वि सु दिट्ट-पुव्वोऽणुभूय-पुन्यो य ।
मरमाण-करुण-कुरुलिर-सारस-मिहुणस्स वुत्तंतो ॥१६३॥
[१५०७] इय चिंतंतो मुच्छा-निमीलियच्छो महीए पडिओ म्हि ।
पाविय-चेयन्नस्स य जाई-सरणं महुप्पन्नं ॥१६४॥ .
[१५०८] अह - सरिस-सुह-दुहाए दइयाए विओइयस्स मह इमिणा।.
किं जीविएण किं वा एयाए विसय-सेवाए ॥१६५॥ [१५०९] जीवियमिमं तु तीरइ न कइदिउँ अंकुडीए देहाओ ।
विसय-सुहं पुण पच्चकावयं विरहेण तीए मए ॥१६६॥ [१५१०] जइ तरुणीओ बहूओ ता किं मह निय-पियाए विरहेण ।
इय चिंतिरो य इय विलविरो य अवरम्मि दियहम्मि ॥१६७॥ [१५११] सिरि-आसाऊरीए पुरओ निय-नयर-पत्त-देवीए ।
__ अ-प्पक्क-घड-सएणं ण्हवणं तुह पिययमा करिही ॥१६८॥ १५०३. २. क, विवण'. १५०६. ३. क. कुरलिर.
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