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________________ ३४९ १५०१ ] सत्तमभवि संखवुत्तंति रइसुंदरीकहा [१४९२] गहिओ अहमवियक्किय-समागएणं उलूय-अहमेण । अह विहि-वसेण तेणं लट्ठयरं लक्खमुवलद्धं ॥१४९॥ [१४९३] गय-जीवियं ति साहीणं ति ममं मुणिय कोट्टरे तरुणो । खिविऊण स-कज्ज-कए उड्डीणोलूय-अहमो जा ॥१५०॥ [१४९४] ताव अहं निय-दइयं स-किंटयं सुमरिऊण सुह-मुत्तं । मा को-वि अवाओ से हवेज्ज इय चिंतिरो तुरियं ॥१५१॥ [१४९५] उड्डीय कोटराओ संपत्तो नियय-नीड-सविहे जा । ता दव-झलक्कियं निय-दइयं दणि महि-वडियं ॥१५२॥ [१४९६] गंतूण सविह-सरे जल-पत्त-पुडं तुरियमाणेउं । दट्टुं च मयं दइयं तयणुपहेणं अहं पि मओ ॥१५३॥ [१४९७] जाओ य वेजयंती-नयरीए वुद्धिसार-नामस्स । इन्भस्स नंदणोऽहं मइसारो नाम-विक्खाओ ॥१५४॥ [१४९८] मह भवणस्स उ सविहे चिठेइ महाली वडो एगो। तत्थ य उवेति जति य विहय-कुलाई विचित्ताई ॥१५५॥ [१४९९] अह अन्नया निसाए उवरिम-साहाए तस्स वड-तरुणो । आगंतुणं सारस-मिहुणं आवासियं एग ॥१५६॥ [१५०० ता विहि-वसेण तत्थागंतु उलूएण अद्ध-रत्तम्मि । तवासि-विहय-वग्गो दिसो-दिसिं नासिओ सयलो ॥१५७॥ [१५०१] अह सारसी स-दइयं अ-नियंती कूजिरी करुण-सदं । विविणंतरेसु भमिउं पडिया तत्थेव आगंतु ॥१५८॥ १५.०. २. क. भट्ट. Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002609
Book TitleNeminahacariya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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