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नेमिनाहचरिउ
[१४८२ [१४८२] अह पुव्वुत्तं वयणं भणिरो- नणु मुयसु मुयसु मह इत्थं ।
जं जइ स-पिया-विरहे मह अंगे लग्गिही जलणो ॥१३९॥
[१४८३] एएसिं पुण कइयव-वयणेण न उत्तरं पि वियरेमि ।
एसो उ पडो लिहिओ मए चरित्तं पि मह एयं ॥१४०॥
[१५८४] निय-दइया-अवलोयण-कयए य सव्वत्थ परिभमामि अहं ।
जंपति य मह चरियं इमं ति वहुयाओ तरुणीओ ॥१४॥ [१४८५] किं पुण न का-वि स-पच्चयं चरितं कहेइ पुग्विल्लं ।
जइ पुण सच्चं चिय तुम तो कहसु पत्तेय ॥१४२॥
[१४८६] को एस महा-सिहरी का वेस महाडवी तरू को वा ।
चत्तारि सारसाइं एयाई काइं कह वेसो ॥१४३॥
[१४८७] निय-चंचु-संपुड-ट्ठिय-जल-पत्त-पुडो दवम्मि पडिऊण ।
दीसइ पज्जंत-दसं पत्तो सारस-वराओ त्ति ॥१४४॥
[१४८८] अह जे अहेसि कहियं कुट्टणि-पुरओ तमक्खियमसेस ।
ता जा मुत्तुं सुत्तं ममं गओ कत्थ वि पिओ त्ति ॥१४५॥ [१४८९] सम्मं पइ-वुत्ततं न मुणामि समासओ उ मुणियमिमं ।
गाहा-चउक्क-दसणओ जह मह चेव विरहेण ॥१४६॥
[१४९०] वयणाणक्खेय-दुहक्कतो पंचत्तमुवगो दइओ।
इय जइ सच्चं चिय तुह चरियमिमं ता कहसु सेसं ॥१४७॥
[१४९१] अह ईसि विहसिऊणं स धुत्त-चूडामणी पयंपेइ ।
जह तइया स-पियाए मुत्ताए पहरय दितो ॥१४८॥
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