SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 360
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४८१] सत्तमभवि संखवृत्तंति रइसुंदरी कहा [१४७२] लिहियं कह वा एसो एवं भणइ त्ति चिंतयंतीए । वेडीहिं तो कमवि आणीओ अप्पणी पुरओ ॥ १२९ ॥ [१४७३] अह चित्त-पडयमवलोइऊण दट्टणमप्पणो चरियं । वाएऊण य गाहाओ ताओ वियसंत-मुह - कमला ॥१३०॥ [१४७४ ] अहह नणु मह पियो वि-हु मह पट्टीए मोति चिंतंती | स- विलक्खं जंपइ - नणु लिहियमिणं केण मह चरियं ॥ १३१ ॥ [१४७५ ] नहि मज्झ पिययमाओ अवरो चरियं इमं मुगइ को-वि । इय भद्द कह को एस वइयरो अह भणइ इयरो ॥ १३२ ॥ [१४७६] जइ तरुणी भो वहूओ ता मह किं निय-पियाए विरहेण । इय पुणरुतं ववगय-लक्खं तं चेव जंपतो ॥ १३३॥ [१४७७] काउं रहमियरीए पुट्ठो सो तह - वि तं चिय भणेइ । अह नणु सो चेत्र इमो मह दइओ सारसो कह - वि ॥ १३४ ॥ [१४७८] संजाय - जाइ - सरणो वियलत्तमुवागओ मह विओए । इय चिंतंती धरि करे विसेसयरमुल्लवइ ॥ १३५ ॥ [१४७९] देवय-गुरु-सवएहिं सविऊण जहा - महा- पुरिस सम्मं । मह चेत्र चरियमेयं जेण य लिहियं स मह भत्ता ।। १३६ ।। [१४८०] जीवामि इह गयाहं सेवामि य एक्कसिं बहु पुरिसे । गइमन्नमपेच्छती गणिय - गिहे पत्त- जम्मं ति ॥१३७॥ [१४८१] परमत्थेण पुणो मह जीयं पंच- विह विसय सुक्खं च । अखलिय- पसरं होही जइ तेणं चिय मह पिएण ॥ १३८ ॥ Jain Education International 2010_05 ३४७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002609
Book TitleNeminahacariya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy