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________________ १५२२ ] सत्तमर्भावि संखवृत्तंति रहसुदरीकहा [१५१२] कणयाहरणमहं कारिस्सं जइ मेलिसि त्ति भणिऊण । परिहरिय भत्त-पाणो पडिओऽहं जीविय-निरीहो ॥ १६९ ॥ [१५१३] तइयोववास-अंते तीए पयडीहवेउ मह पुरओ । भणियं जह-वच्छ तुमं वच्चसु उज्जेणि-नयरीए ॥ १७० ॥ [१५१४] तत्थ य तुह दइया सा मिलिही होही य संगमो सुइरं । किंतु निय-मुह-पवन्नं तुब्भेहिं मज्झ दायव्वं ॥ १७१ ॥ [१५१५] इय देवया वयणं सोउं सच्च इमं ति मन्नंतो । आगंतु एत्थ गहिलीहुओ चिट्ठामि परिभमिरो ॥ १७२॥ [१५१६] अह लहु सव्वंग- समुल्लसंत-रोमंच-राइ-चिंचइया । हरिस - वियासिय- वयणा जंपइ रइसुंदरी - नाह ॥१७३॥ [१५१७] नो वितह वाइणीओ देवीओ कया-वि होंति जिय- लोए । इय तीए अहं चि तुह पिययम कहिय म्हि दइयति ॥ १७४॥ [१५१८] ता काऊण पसायं वीसत्थीहोसु उज्झ विसायं । चिसु इहेव हवसु य मज्झ तुमं सामिसालो ति ॥ १७५ ॥ [१५१९] एयाओ कणय - तेरस कोडीओ इमा य अहमिमं भवणं । तुम्हच्चयं ति पसिउं निउंजियव्वं स कज्जम्मि ॥ १७६ ॥ [१५२०] आसाऊरिय- देवीए वि-हु तुन्भेहिं जं पवन्नं तं । अ-पक्क - घड-सरणं सिणाण-कम्मं करिस्समहं ॥ १७७॥ [१५२१] एत्तो वि मज्झ वि तुमं पुरुव-भव-प्पिययमं समुडभेउं । अंगे लग्गइ जलणो जइ न तो ?) सक्खमवि इंदो ॥ १७८ ॥ [१५२२] एसो उण वृत्तंतो पिययम कस्स-वितए न कहियव्वा । जं पुव्व - छइल्लेहिं भणियमिणं पेम-संबंधे ॥ १७९॥ Jain Education International 2010_05 ३५१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002609
Book TitleNeminahacariya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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