SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 365
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५२ नेमिनाहचरिउ [ १५२३ [१५२३] प्रिय-संगमि जे वुल्लडा सहि वित्ता एक्कंति । ते गुरु-मंतक्खर-सरिस कहणा कसु वि न जंति ॥१८०॥ [१५२४] तह पिययम संसारे गिरि-गरुवासे स-दोस-भंडारे । एयम्मि वितह-वाई पाएण जणो समग्गो वि ॥१८॥ [१५२५] किं पुण गणिया वग्गो इय मा तुह मह य लाहवं होज्जा । __ मज्झे जणाण वितहं सयलं पि इमं ति मुणिराण ॥१८२॥ [१५२६] अहयं तु उज्जमिस्सं कहं पि तह जेण विग्घ-विरहेण । तुमए सह मह होहो जा-जीवं विसय-सेव त्ति ॥१८३॥ [१५२७] इय विहिय-निच्छया सा रइसुंदरि-कामिणी गणिय-पवरा । पडिवन्न-सयल-वयणस्स धुत्त-तिलयस्स तस्स लहुं ॥१८४॥ [१५२८] नियय-कर-किसलएहिं विण्णाण-प्पगरिसेण य निएण । व्हाण-विलेवण-वत्थालंकारे वियरइ स-तोसं ॥१८५॥ [१५२९] इयरो वि-हु पडिवज्जिय-साहाविय-महिम-रूव-विण्णाणो । जाओ उवहसियाखिल-तियसासुर-खयर-माहप्पो ॥१८६॥ [१५३०] ता स-विसेसुल्लासिय-हरिसा सा कं-चि कालमइगमइ । जा ताव महीवइणो जाए पढमम्मि तणयम्मि ॥१८७॥ [१५३१] कलहट्ट-कए सयलाओ वि-हु तन्नयर-चारविलयाओ। सद्दावियाओ नरवइ-पहाण-पुरिसे हिं निव-भवणे ॥१८८॥ [१५३२] ता पेच्छणयारंभे मिलिए सयलम्मि पुहइ-पवर-जणे। रइसुंदरीए सुइराहिगयाए स-न-किरियाए ॥१८९॥ [१५३३] तह तह वियंभियं जह झडत्ति सयलो वि रंग-लोगो सो । जाओ लेप्पमओ इव पणासियासेस-वावारो ॥१९०॥ १५२१. २. गरुयासे. ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002609
Book TitleNeminahacariya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy