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________________ १५४३ ] सत्तमभवि संखवुत्तंति रइसुंदरीकहा [१५३४] अह तुट्टेण निवइणा -- मग्गसु मग्गसु वरं ति भणिया सा । पत्तावसरं मग्गिय रहं स-वुत्तंतमक्खेउं ॥१९१॥ [१५३५] विण्णवइ जहा - तं चिय पुव-भव-प्पिययम महिन्भ-सुयं । वियरेसु सामि पसिउं इयरेण उ मज्झ पज्जत्तं ॥१९२॥ [१५३६] अह नरवइणा कुट्टणि-वग्गं भणिऊण तं तहेव कयं । ता स-विसेसं पाविय-रज्ज-समिद्धि व्व साणंदं ॥१९३॥ [१५३७] पयडिय-उज्जेणी-जण-वेसमण-अणंग-मण-चमक्कारो । आसाऊरिय-देवीए काउ तं तह सिणाण-विहिं ॥१९४॥ [१५३८] तक्कारिय-कणयाहरणेणं पडिपुन्न-वंछियत्षेण । नीसेस-धुत्त-चूडामणिण सह मूलएवेण ॥१९५।। [१५३९] अणवरयं पि हु अ-मुणिय-रयणि-दिणा पंच-भेय-विसय-सुई। अणुभुजइ रइसुंदरि तरुणी जय-तरुणि-तिलय त्ति ॥१९६॥ [१५४०] वेसमण-अणंगा उण ते तह तं सच्चवेउ स-विलक्खा । गुरु-विम्हया य होउं उववूहेडं च धुत्तं तं ॥१९७॥ [१५४१] वियलिय-निय-प्पइण्णा विच्छाय-मुहा पण?-उच्छाहा । रइमलहंता पत्ता निय-निय-ठाणेसु कह-कह-वि ॥१९८॥ [१५४२] धुत्तो वि-हु तीए समं सुहेण काई-चि दिणाई अइगमइ । अह अन्नया य तेसिं स-कय-निओएण केणावि ॥१९९॥ [१५४३] पणय जण-कप्पविडवी संसार-समुद्द-तारण-तरंडो। काणण-गयाण मिलिओ सूरि सिरि-धम्मघोसो ति ॥२०॥ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002609
Book TitleNeminahacariya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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