Book Title: Neminahacariya Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 367
________________ ३५४ नेमिनाहचरिउ [१५४४ [१५४४] भत्ति-बहु-माण-पुव्वं नमिउं च गुरु जहोचिय-हाणे । दोण्णि वि ताई सिरि-कय-कर-कोसाइं निविट्ठाई ॥२०१॥ [१५४५] अह स-जल-जलय-गहिर-झुणिणा मुणि-नायगेण । पारद्धा धम्मकहा भव-भाव-विराय-संजणणी ॥२०२॥ [१५४६] हंत अणंताई भाव-पुग्गल-परियट्ट सय-सहस्साई । कम्म-वसेणं जीवा भमंति मिच्छत्त-तिमिरंधा ॥२०३॥ [१५४७] तं नत्थि किं-पि ठाणं वालग्ग-पमाणमवि भव-वणम्मि । जम्म-मरणाई जत्थ न अणंतसो पत्त-पुव्वाइं॥२०४॥ [१५४८] तं नस्थि विसय-सोक्खं तज्जणियं इह दुहं पि तं नस्थि । जं जीवेहि न पत्तं न उ लद्धो एस जिण-धम्मो ॥२०५॥ [१५४९] सत्तरि-कोडाकोडी-सायर-उवमाण-मोहणिज्जस्स । वेयणियावरण-दुग-विग्घाण य तीस-उक्कोसा ॥२०६॥ [१५५०] वीस कोडाकोडी नामय-गोत्ताण हवइ परम-ठिई । एएसि य सत्तण्ह वि करणेण अहा पवित्तेण ॥२०७॥ [१५५१] अंतो कोडिकोडिं धरिउ खवियम्मि सेसए जीवा । पावंति कम्म-गठिं घण-राय-बोस-परिणामं ॥२०८॥ [१५५२] एत्तिय-दूरं च इमे पत्ता सव्वे अणंतसो जीवा । किंतु अउण्णा पुणरवि परिवडिऊणं गया मूले ॥२०९॥ [१५५३] वंचंति य परम ठिई कम्माण पुणो वि संकिलेसाओ। भमिहंति भवमभव्वा एवं पुरओ वि सइ-कालं ॥२१०॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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