Book Title: Neminahacariya Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 371
________________ ३५८ [१५७५ नेमिनाहचरिउ [१५७५] सा कुलायल-तुंग-जिण-भवणसिहर-ट्ठिय-कणय-सय- कुंभ-किरण-अवहरिय-तम-भर । चंप त्ति भुवण-प्पयड- नामधेज्ज इह आसि पुरि-वर ॥ तत्थ य सूरु वि उवसमिय- महियल जण-संतावु । सोमु वि अ-प्पणमंत-जण-हियय-डहण वण-दावु ॥ [१५७६] आसि नरवई सयल-नय-सत्थपह-पयडण-सहसकरु सुहड-तुरय-रह-करि-समिद्धउ । मुसुमरिय-रिउ-नियरु सिरि-जियारि-नामिण पसिद्धउ ॥ तसु पुणु आसि ससंक-मुहि छण-ससि-निम्मल-कित्ति । पत्त-पसिद्धि समग्गि जगि नामिण कित्तिमइ त्ति ॥ [१५७७] तेसि असरिस-विसय-सुक्खाई भुजंतहं वहु-सुयह उवरि पउर-पत्थणय-जोगिण । संजाय जयब्भहिय- रूव एग सुकयाणुहाविण ॥ तसु सुय-जम्मम्मि व असम- ऊसव-सहस-पहाणु । जणणी-जणइहिं वियरियउं जसमइ त्ति अभिहाणु ॥ [१५७८] जीए रयणिहिं नियय-तणु-किरणमाल च्चिय दीव-सिह सोह-मेत्तु मंगल-पईव य । सवणाण विहूसणई नयण कमल ठिइ-मेत्तमेव य ॥ गंड-यल च्चिय तिमिर-हर जगि पहु ससि-रवि-संख । सवण जि अंदोलय ललिय विहल महुहु आकंख ॥ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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