Book Title: Nemidutam
Author(s): Vikram Kavi
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 113
________________ ६४ ] नेमिदूतम् अर्थः उस ( गन्धमादन ) पर ( द्वारिका को ) जाते हुए सुनकर नगर से शीघ्र समीप आकर दरिद्रता के कारण हीन याचक समूह विख्यात यश वाले तुम ( नेमि ) से याचना करेंगे । ( तुम ) उन याचकों को मनोवाञ्छित वस्तु प्रदान कर कृतकृत्य कर देना; क्योंकि बड़ों की समृद्धि पीडितों की पीड़ा को दूर करने के लिए ( होती हैं ) । आकर्ण्याद्रिप्रतिरवगुरुं वानरास्त्वत्सकाशे, क्रोधाताम्रा जनमुखरवं तत्र येऽभिद्रवन्ति । तान्योधानां विमुखय पुनर्दारुणैयनिनादैः, के वा न स्युः परिभवपदं निष्फलारम्भयत्नाः ॥ ५८ ॥ * अन्वयः - तत्र, अद्रिप्रतिरवगुरुम् जनमुखरवंम् आकर्ण्य ये बानराः, क्रोध ताम्राः, त्वत्सकाशे, अभिद्रवन्ति, पुनः, तान् योधानाम्, दारुणैर्ज्यानिनादैः, विमुख, निष्फलारम्भयत्नाः, के वा परिभवपदम् न, स्युः । आकर्ण्याद्रिप्रतिरवगुरुमिति । तत्र अद्विप्रतिरवगुरुं जनमुखरवं गन्धमादने पर्वतप्रतिध्वनिगम्भीरं जनानां त्वदभिमुखागतानां लोकानां कोलाहलम्, आकर्ण्य श्रुत्वा इत्यर्थः । ये वानराः क्रोधाताम्राः ये कपयः कोपदारुणमुखाः त्वत्सकाशे अभिद्रवन्ति भवत्समीपे आगच्छन्ति । पुनः तान् योधानां दारुणैज्यनिनादैः पश्चात् वानरान् शूराणां प्रत्यञ्चाविस्फारैः विमुखय पराङ्मुखीकुरु । निष्कलारम्भयत्नाः विफलव्यापारसंलग्ना [ आरम्भेषु यत्नः- आरम्भयत्नः ( स० तत् ० ) निष्फल आरम्भयत्नः येषान्ते निष्फलारम्भयत्नाः ( बहुब्री० ) ] । के वा परिभवपदं न स्युः जन्तवः तिरस्कार- पात्रा: [ परिभवस्य पदम् - परिभवपदम् ( ष० तत् ० ) ] न भवेयुः सर्वे भवत्येवेति ध्वनिः ॥ ५८ ॥ शब्दार्थ : तत्र - वहाँ ( गन्धमादन ) पर, अद्रिप्रतिरवगुरुम् — पर्वत की प्रतिध्वनि के कारण गम्भीर, जनमुखरवम् - ( तुम्हारे समीप आये हुए ) लोगों की कोलाहल को, आकर्ण्य - सुनकर के, ये वानाराः - जो कपि समूह, क्रोधाताम्राः — क्रोध से अरुणमुख होकर; त्वत्सकाशे - तुम्हारे समीप में, अभिद्रवन्ति - आ जाते हैं, आयेंगे, पुनः - फिर, पश्चात्, तान् — उन ( वानरों ) को, योधानाम् — शूरों की, दारुणैर्ज्यानिनादः – कठोर प्रत्यञ्चास्फालन के द्वारा, विमुखय -- पराङ्मुख कर देना, निष्फलारम्भयत्नाः -- व्यर्थ के कार्यों के लिये प्रयत्न करने वाले, के वा-कौन से जन्तु, परिभवपदम् - तिस्कार के पात्र न स्युः — नहीं होते हैं । - - - Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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