Book Title: Nemidutam
Author(s): Vikram Kavi
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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नेमिदूतम्
[ १०३
श्रुतिसुखकरैः, गीताद्यैः, प्रस्तुतैः, विनोदैः, वा, पौराणीभिः, कथाभिः, वा, रजनिषु, उन्निद्राम्, अवनिशयनाम्, ताम्, तुष्टिम्, नेतुम्, पुनः, न, क्षमोऽभूत् । ____ गीताद्यैर्वा इति । त्वद्वियोगात् कृशतनुमिमां हे राजन् ! भवतः नेमे इत्यर्थः, विरहात् कृशाङ्गीमेनां राजीमतीम् इति भावः । सोधवातायनस्थः आलिवर्गः वातस्य आयनं वातायनम् (१० तत्० ), । सौधवातायने तिष्ठतीति सौधवातायनस्थः ( उपपदः ) सखीसमूहः । श्रुतिसुखकरैर्गीताद्यैः श्रवणसुखदैगीताद्यः । प्रस्तुतविनोदैः प्रस्तावोचितरंजनावाक्यैर्वा । पौराणीभिः कथाभिः पुराणसम्बन्धिनीभिः कथाभिः वा । रजनिषन्निद्रामवनिशयनां नित्सुभग्ननिद्रां भूमि-शायिनीम्, [ उन्निद्राम्-उत्सृष्टा निद्रा यया सा उन्निद्रा ( बहुब्री० ) ताम् । अवनिशयनाम्-अवनिरेव शयनं यस्याः सा अवनिशयना ( बहुब्री० ) ताम् । ] तां बालां, विरहविधुरां राजीमतीम् इति भावः। तुष्टि नेतुं प्रीति दातुम् । न क्षमोऽभूत् पुनः समर्थो नाभूत् ।। ९६ ॥
शब्दार्थः - त्वद्वियोगात्-तुम्हारे विरह के कारण, तुम्हारे वियोग में, कुशतनुम्-दुबली-पतली शरीर वाली, इमाम्-राजीमती को, सौधवातायनस्थः ( सन् )-अटारी की खिड़की पर बैठकर, आलिवर्गः-सखीसमूह, श्रुतिसुखकरैः-कर्णप्रिय, गीतायैः-गीतादि से, प्रस्तुत:-प्रस्तावोचित, समयानुकूल, विनोदैः-रञ्जनायुक्त वाक्यों से, वा-अथवा पौराणीभिः-पौराणिक, पुराणसम्बन्धिनी, कथाभिः- कथाओं से, वा-- अथवा, रजनिषु-रात्रि में, उन्निद्राम-भग्ननिद्रा वाली, जागती हुई, अवनिशयनाम्-पृथ्वी पर सोयी हुई, ताम्-उस विरह विधुरा राजीमती को, तुष्टिम्-सान्त्वना, नेतुम्देने में, पुनः-फिर भी, न-नहीं, क्षमोऽभूत्-समर्थ हुई।
अर्थः - तुम्हारे ( नेमि के ) विरह में दुबली-पतली शरीर वाली इस राजीमती को अटारी की खिड़की पर बैठकर सखीसमूह कर्ण सुखद गीतादि से अथवा समयानुकूल रञ्जनायुक्त वाक्यों से अथवा पुराण सम्बन्धिनी कथाओं से रात्रि में भग्ननिद्रावाली उस राजीमती को सान्त्वना देने में फिर भी समर्थ नहीं हुई। या प्रागस्याः क्षणमिव नवर्गोतवार्ताविनोद
रासीत् शय्यातलविगलितैर्गल्लभागो विल घ्य। राति संवत्सरशतसमां त्वत्कृते तप्तगात्री, ___ तामेवोष्णविरहजनितैरश्रुभिर्यापयन्ती॥६७॥
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