Book Title: Nemidutam
Author(s): Vikram Kavi
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 184
________________ मेमिदूतम् 1१३५ मतसुखम् -जिस प्रकार अभीष्ट सुख मिलता रहे, आनन्दम्-परमानन्द का, शश्वत्-निरंतर, भोजयामास-भोग कराया। अर्थः - ( इसके बाद ) इस रामगिरि पर ध्यान से केवलज्ञान प्राप्तकर देव-सर्प-तर ( किन्नर-किम्नरियों ) द्वारा स्तुति किये जाते हुए इस नेमिनाथ ने उस राजीमती को सांसारिक सुख-दुःख-मोह स्वरूपा प्रिय भोगों को छुड़ाकर के मोक्ष की नगरी में जिस प्रकार ( राजीमती को ) अभीष्ट सुख मिलता रहे, परमानन्द का निरन्तर भोग कराया। टिम्पपी: - भोजयामास'-णिजन्त/ भोजि से लिट् लकार पुनः 'तिप् णलादि' करके उसका लोप इत्यादि करके 'आम' आदि लाकर, पुनः 'कृञ् चानु प्रयुज्यते लिटि' इस सूत्र से लिट् परक 'अस्' का अनुप्रयोग करके गुण अयादेश आदि करके, 'भोजयामास' रूप बनता है । सद्भतार्थप्रवरकविमा कालिबासेन काव्या बन्त्यं पादं सुपदरचितान मेघदूताद् गृहीत्वा, श्रीमन्नेमेश्चरितविशवं साङ्गणस्याङ्गजन्मा; चके काव्यं बुधजनमनः प्रीतये विक्रमाख्यः ॥१२६॥ बम्बयः -- सद्भूतार्थप्रवरकविना, कालिदासेन सुपदरचिताद, मेघदूताद, अन्त्यम्, पादम्, गृहीत्वा, साङ्गणस्याङ्गजन्मा, विक्रमाख्यः, बुधजनमनः, प्रीतये, श्रीमन्नेमेश्चरितविशदम्, काव्यम्, चक्रे । सद्भूतार्थेति । 'सद्भूतार्थप्रवरकविना' सद्भूता:- सत्या ये अस्तिः प्रवरः श्रेष्ठ यः कविस्तेन, कालिदासेन । सुपदरचितान्मेघदूताद् सुष्ठपदविरचितान्मेघदूताद् । अन्त्यं पादं श्लोकस्य चतुर्थचरणम्; गृहीत्वा ग्रहणं कृत्वा । साङ्गणस्याङ्गजन्मा श्रीसाङ्गणतनयः । विक्रमाख्यः विक्रमनामा कविः । बुधजनमनः प्रीतये सहृदयचेतः आनन्दाय । श्रीमन्नेमेश्चरितविशदम्-निर्मलम्, काम्यं चक्रे चकारेति ॥ १२६ ॥ शम्बार्य : - सद्भूतार्थप्रवरकविना-सत्य अर्थ को जानने वालों में श्रेष्ठ कवि कालिदासेन-कालिदास द्वारा, सुपदरचितात्-सुन्दरपदों से रचित, मेघदूता-मेघदूत से; अन्त्यम्-अन्तिम, पादम्-चरण ( पाद ) को, गृहीत्वा-ग्रहण करके, ले कर के, साङ्गणस्याङ्गजन्मा-साङ्गण का पुत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 182 183 184 185 186 187 188 189 190