Book Title: Nemidutam
Author(s): Vikram Kavi
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 132
________________ नैमिदूतम् निर्गम्यन्ते शरदि यदुभिः सद्मपृष्ठेषु कीर्त्या, नित्यज्योत्स्ना प्रतिहततमोवृत्तिरम्याः प्रदोषाः ॥७७॥ अन्वयः , यस्याम्, उद्यत्कामालसयुवतिभिः सेव्यमानैः, सरोजोद्गन्धान्, ऐक्षिवान्, सुमधुररसान्, आपिबद्भिः, यदुभिः शरदि, सद्मपृष्ठेषु कीर्त्या नित्यज्योत्स्नाः, प्रतिहततमोवृत्तिरम्याः, प्रदोषाः, निर्गम्यन्ते । - [ ८३ " उद्यत्कामास युवतिभिरिति । यस्याम् उद्यत्कामाल सयुवतिभि: हे नाथ ! यस्यां द्वारिकायाम् उदयं प्राप्नुवन् यः कामस्तेन अलसाभिः युवतिभिः प्रसारणाकुञ्चनासमर्थाभिः मदन अङ्गनाभिरित्यर्थः । सेव्यमानः सरोजोद्गन्धान् भज्यमानः सरोजगन्धमुत्क्रम्य गन्धो येषां ते सरोजोद्गन्धान् । ऐक्षिवान् इक्षोरिमे विकारा ऐक्षवांस्तान् सुमधुररसान् अतिमृष्टरसान् आपि - बद्भिः समन्ताद्पानं कुर्वद्भिः । यदुभिः शरदि बलप्रमुखादिभिः शरत्काले । सद्द्मपृष्ठेषु कीर्त्या नित्यज्योत्स्नाः गृहोपरिभागेषु कीर्तिवत् अनवरतचन्द्रिकाः । प्रतिहततमोवृत्तिरम्याः विनष्टान्धकारत्वान्मनोहराश्च । प्रदोषाः निर्गम्यन्ते रात्रयः अतिवाह्यन्ते ॥ ७७ ॥ Jain Education International www. -- शब्दार्थः यस्याम् - जिस द्वारिका में, उद्यत्कामालस युवतिभि:मदन के उत्कट प्रभाव से अलसाई हुई अङ्गनाओं द्वारा, सेव्यमानै:सेवित, सरोजोद्गन्धान् - कमल के सुगन्धि से श्रेष्ठ, ऐक्षिवान् — ईक्षु की, सुमधुररसान् - अत्यधिक मधुर रसों का, आपिबद्भिः:- पान करते हुये, यदुभि: - यदुसमूह, शरदि - शरत्काल में, सद्द्मपृष्ठेषु - भवनों के ऊपरी भाग में, भवनों की छतों पर, कीर्त्या - कीर्तिवत्, नित्यज्योत्स्नाः - नित्य चांदनी से प्रकाशित, ( अतएव - अतः ), प्रतिहततमोवृत्तिरम्याः - अन्धकार के दूर रहने के कारण मनोहर, प्रदोषाः - रात्रियों में, निर्गम्यन्ते निकलते हैं, टहलते हैं । अर्थ: जिस द्वारिका में मदन के उत्कट प्रभाव से अलसाई हुई अङ्गनाओं से सेवित, कमल की सुगन्धि से श्रेष्ठ ( उत्कृष्ट ) ईक्षु के अत्यधिक मधुर रसों का पान करते हुये यदुसमूह शरत्काल में भवनों के ऊपर कीर्तिवत् नित्य चाँदनी से प्रकाशित ( अतएव ) अन्धकार के दूर रहने के कारण मनोहर रात्रियों में टहलते हैं, घूमते हैं । कौन्दोत्तंसास्तुहिनसमये कुंकुमालिप्तदेहाः, सान्द्रच्छाये शुचिनि तरुभिर्गोमतीरम्यतीरे । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190