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नींव का पत्थर
पूर्वाग्रह के झाड़ की जड़ें गहरी नहीं होती
श्रद्धा में वस्तुस्वातंत्र्य के सिद्धान्त का अटूट विश्वास होने पर भी जब तक गृहस्थ जीवन में अपनी संतान के प्रति राग है, तबतक उसके भविष्य को उज्ज्वल बनाने के विकल्प नहीं छूटते।।
माँ समता की यह भावना थी कि ज्योत्स्ना को ऐसा वर और घर मिले कि जिससे उसके पारिवारिक जीवन का निर्वाह भी शांतिपूर्वक हो
और परलोक भी न बिगड़े। सौभाग्य से ऐसा ही बनाव बन गया। ज्योत्स्ना को बुद्धिमान, स्वस्थ, सुन्दर और तेजस्वी गणतंत्र जैसा वर और एकदम खुले विचारों वाला घर-परिवार मिल गया था। इसकारण माँ आश्वस्त हो गई थी कि अब ज्योत्स्ना के दोनों लोक सुधर जायेंगे; परन्तु सगाई हो जाने के बाद समता की एक सहेली ममता ने बिना माँगे मुफ्त में यह सलाह दे डाली थी। उसने कहा - "और तो सब ठीक है, परन्तु आजकल सासें बहुत बदनाम हैं, लड़के का स्वभाव भी तेज है। जरा सोच-समझकर कदम उठाना।"
समता ने सोचा - “जो माँ, बेटे के गोद में आते ही घर में बह बुलाने के सपने सजोने लगती हो, ज्यों-ज्यों बेटा बड़ा होता है, त्यों-त्यों उन स्वप्नों को साकार करने के लिए उत्सुक होने लगती हो। निरन्तर प्रतीक्षारत रहती हो, और जिसने पलक पाँवड़े बिछाकर बहू का स्वागत किया हो; भला वह सासू माँ उसी बहू से बुरा व्यवहार कैसे कर सकती है? और आखिर वह ऐसा काम करेगी ही क्यों; जिससे स्वयं बदनाम हो
और पूरा परिवार दुःखी हो ? और लड़के को तो तेजस्वी होना ही चाहिए।"
समता आगे सोचती है - "सहेली की सलाह में ही कहीं कुछ दाल में काला है। कुछ औरतों की आदत भी इधर की उधर, उधर की इधर करने की होती है। ये ममता भी भिड़ाने में कम नहीं है।
बहू को घर में लाने के पहले सासें ही तो पसंद करती हैं। फिर भी न जाने क्यों? लोक में सासों पर ही बुरे व्यवहार का आरोप लगाया जाता है? उन्हीं को बदनाम क्यों किया जाता है खेर ! जो भी हो।"
यह सोचकर समता पहले से ही इस बात से सजग रही कि कहीं "ऐसी ही कोई घटना ज्योत्स्ना के साथ न घट जाय अन्यथा उस सहेली की बात सच हो जायेगी और उसे कहने का मौका मिल जायेगा तथा मेरे हाथ केवल पछतावा रह जायेगा। अतः शादी के पहले सही-सही पता तो एक बार लगाना ही होगा।"
गहराई से शोध-खोज करने पर, समता को पता चला कि “प्रायः होता यह है कि - लड़कियों की शादी के पूर्व उनकी सखी-सहेलियाँ, भाभियाँ और बड़ी बहिनें आदि जो उन अविवाहित लड़कियों की मौजमस्ती से, नाज-नखरों से तथा घरेलू कामों में हाथ न बटाने से परेशान रहतीं हैं, वे समय-समय पर हंसी-मजाक में अपनी प्रतिक्रिया प्रगट करते हुए कह दिया करती हैं कि 'बहना! और कुछ दिन मौज-मस्ती करलो, अपनी नींद सो लो और अपनी नींद जागलो; फिर सुसराल में तो सबके सो जाने पर ही सो सकोगी और सबसे पहले जागना पड़ेगा। और जब चक्की, चौका-चूल्हे का काम भी तुझे ही चुप-चाप रहकर करना पड़ेगा, तब नानी याद आयेगी।
भूल जाओगी राग-रंग, अर भूल जाओगी छकड़ी।'
बात-बात में डाँट पड़ेगी सासू माँ की तगड़ी।" यदि मुँह खोला, कुछ कहा-सुना और नाक-भौं सिकोड़ी तो पतिदेव द्वारा लात-घूसा से पूजा भी हो सकती है; क्योंकि पत्नियों का पतियों से पिटना तो भारतीय परम्परा रही है।"
समता विचारों में डूबी यह सब सोच ही रही थी कि - ज्योत्स्ना की भाभी बीच में ही बोली – “और हाँ, सुन ज्योत्स्ना ! तेरी ससुराल में मैं तो तेरे साथ जाऊँगी नहीं, जो अभी बिस्तर पर ही गर्म-गर्म चाय और बिस्कुट लाकर देती हूँ। इसलिए - कम से कम चाय बनाना सीख ही ले।" ___ यह सब देख/सुनकर समता इस निष्कर्ष पर पहुँची कि - "सुसराल के बारे में ऐसे कमेन्ट्स सुनते-सुनते लड़कियाँ ससुराल पक्ष से आतंकित १. उछलकूद
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