Book Title: Neev ka Patthar
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 28
________________ नींव का पत्थर राष्ट्रीय स्वतंत्रता और वस्तुस्वातंत्र्य (द्रव्यों) का न तो सामान्य अंश उपादान कारण होता है और न विशेष अंश, अपितु सामान्य-विशेषात्मक द्रव्य ही उपादान कारण होता है। इसके मूलत: दो भेद हैं १. त्रैकालिक उपादान २. तात्कालिक उपादान । तात्कालिक उपादान के दो भेद हैं, १. अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय २. तत्समय की योग्यता, तत्समय की योग्यता ही कार्य का असली कारण है। ___अष्ट सहस्त्री ग्रन्थ के कर्ता आचार्य विद्यानंद ने इसी भाव को ध्यान में रखकर उपादान कारण को इस प्रकार परिभाषित किया है कि - "जो पर्याय विशिष्ट द्रव्य तीनों कालों में अपने रूप को छोड़ता हुआ भी नहीं छोड़ता है और पूर्व रूप से अपूर्व रूप में वर्तन करता है, वह उपादान या कृत्रिम अर्थात् किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा किए गये हों। जैसे - पत्थर प्राकृतिक है और उसमें उकेरी गई, गढ़ी गई प्रतिमा कृत्रिम है, हीरा प्राकृतिक है और हीरे का हार कृत्रिम है। परन्तु पत्थर और प्रतिमा तथा हीरा और हार - ये दोनों ही कार्य हैं, अत: उनके कारण भी नियम से हैं ही। वह प्रतिमा और हार हमारी स्थूल दृष्टि में कृत्रिम हैं और पत्थर एवं हीरा अकृत्रिम नजर आते हैं; परन्तु उनके कारण-कार्य की सूक्ष्म दृष्टि से शोध-खोज करने पर हमें ज्ञात होगा कि उन सभी के एक नहीं पाँच-पाँच कारण दावेदार हैं। उदाहरणार्थ देखें - पत्थर को प्रतिमा बनने के संबंध में १. पत्थर का स्वभाव कहता है कि 'यदि मैं नहीं होता तो प्रतिमा का अस्तित्व ही नहीं होता। अतः असली कारण तो मैं ही हूँ २. पुरुषार्थ कहता - यदि मैं प्रतिमा बनाने की प्रक्रिया सम्पन्न नहीं करता तो प्रतिमा बनती कैसे? ३. होनहार का दावा है कि प्रतिमा बनने की होनहार या भवितव्य ही न होती तो प्रतिमा बन ही नहीं सकती थी। ४. काललब्धि कहती है - जब प्रतिमा बनने का समय आयेगा तभी तो बनेगी, तुम लोगों की जल्दबाजी करने से क्या होता? ५. निमित्त (कारीगर) कहता है मैं जब छैनी चलाऊँगा, तभी बनेगी न । कोई जादूगर का खेल तो है नहीं जो जादू से हथेली पर आम उगाने की भाँति बना दे। पाँचों कारण अपना-अपना कर्तृत्व बताकर अहंकार करते हैं; पर ज्ञानी कहते हैं कि - यद्यपि कारणों के बिना कार्य नहीं होता परन्तु जब काम उपादान में अपनी तत्समय की योग्यता से होना होता है, तभी होता है और पाँचों कारण अपनी योग्यतानुसार तब मिलते ही मिलते हैंऔर जब उपादान की तत्समय की योग्यता से कार्य रूप परिणमित नहीं हो तो एक भी कारण नहीं मिलता। अतः किसी को भी अभिमान करने की कोई गुंजाइश नहीं है। पत्थर की द्रव्य-गुण-पर्यायें पूर्ण स्वतंत्र है। उनमें अन्य द्रव्यों का अत्यन्ताभाव है। लोक की वस्तु व्यवस्था के अनुसार वस्तुओं उपर्युक्त कथन से सिद्ध है कि - द्रव्य (वस्तु) का केवल सामान्य अंश व केवल विशेष अंश उपादान कारण नहीं होता, बल्कि दोनों अंशों से सहित द्रव्य (वस्तु) ही कार्य का उपादान कारण है। "द्रव्य सत्स्वभावी है और सत् उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य युक्त है। ध्रौव्य द्रव्य शक्ति है और उत्पाद-व्यय पर्यायशक्ति है। ___ द्रव्यशक्ति के अनुसार कार्य का नियामक कारण त्रिकाली उपादान है अतः इस अपेक्षा से सत्कार्यवाद का सिद्धान्त सही है; किन्तु केवल द्रव्यशक्ति के अनुसार कार्योत्पत्ति मानने पर कार्य के नित्यत्व का प्रसंग आता है। इस कारण वह कार्य का नियामक कारण नहीं है। तत्समय की योग्यतारूप पर्याय शक्ति ही कार्य का नियामक कारण है और वही पर्याय का कार्य है। इस प्रकार वास्तविक कारण-कार्य सम्बन्ध एक ही द्रव्य की एक ही वर्तमान पर्याय में घटित होते हैं, उसी समय संयोग रूप जो उस कार्य के अनुकूल परद्रव्य होते हैं, उन्हें उपचार से निमित्त कारण कहा जाता है। (28) १.अष्ट सहस्त्री कालिका ५८ की टीका........ २.प्रमय कमल मार्तण्ड पृष्ठ - १८७

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