Book Title: Neev ka Patthar
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 46
________________ नींव का पत्थर आयोजन का प्रयोजन पहचानें महावीर जयन्ती के मंगल महोत्सव के दिन उनके मुँह से वर्षों बाद महावीर स्तवन के निम्नांकित छन्द निकले तो सभी श्रोताओं के मन मयूर नाच उठे । समताश्री के तो हर्ष का ठिकाना ही न रहा। वे बोल रहे थे - "जिसने बताया जगत को प्रत्येक कण स्वाधीन है। कर्ता न धर्ता कोई है, अणु-अणु स्वयं में लीन है।। आतम बने परमात्मा, हो शान्ति सारे देश में । है देशना सर्वोदयी, महावीर के संदेश में ।।' जो निज दर्शन ज्ञान चरित अरु, वीर्य गुणों से हैं महावीर। अपनी अनन्त शक्तियों द्वारा, जो कहलाते हैं अतिवीर ।। जिसके दिव्य ज्ञान दर्पण में, नित्य झलकते लोकालोक। दिव्यध्वनि की दिव्यज्योति से, शिवपथ पर करते आलोक।।"२ जीवराज को अपने जवानी के जोश में खोए होश की सजा मानो इसी जन्म में मिल चुकी थी। उनके भाग्य के इस उतार-चढ़ाव को देखकर सैकड़ों लोगों ने सबक सीखा और अपने इस दुर्लभ मनुष्यभव को सफल करने के लिए नियमित स्वाध्याय करने की प्रतिज्ञायें कर लीं; क्योंकि उन्होंने पढ़ा था, सुना था कि "ज्ञान समान न आन जगत में सुख को कारण। यह परमामृत जन्म-जरा मृतु रोग निवारण ।। तथा कोटि जन्म तपतपें ज्ञान बिन कर्म झरै जो। ज्ञानी के छिन माँहि त्रिगुप्ति से सहज टरै ते।' महावीर जयन्ती के दिन ही जीवराज को मानो नया जन्म मिला है, अतः उन्हें शाम की संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित करके १. डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल : महावीर वंदना २. पं. रतनचन्द भारिल्ल महावीर स्तवन ३. कवि दौलतराम : छहढाला उनका स्वागत किया गया। उन्होंने गद्-गद् भाव से अपनी हृदयोद्गार व्यक्त करते हुए आज के विषय से संबंधित कुछ वे बातें भी कहीं, जो उन्होंने बीमारी की अशक्त अवस्था में टेप प्रवचनों द्वारा सुनी थीं। उन्होंने आज के निर्धारित विषय पर अपना चिन्तन प्रस्तुत किया - “षट्कारक कारण-कार्य प्रक्रिया का अभिन्न अंग है। मोक्षमार्ग की उपलब्धि में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। वस्तुस्वातंत्र्य जैसे महत्वपूर्ण सिद्धान्त को समझने के लिए षट्कारकों का समझना अति आवश्यक है। ___ यह विषय वस्तुस्वातंत्र्य, कारण कार्य स्वरूप, कर्ता-कर्म और अनेकांत जैसे प्राणभूत सिद्धान्तों जैसा ही महत्वपूर्ण प्रकरण है। वस्तु की स्वतंत्रता का उद्घोषक और वीतरागता का हेतुभूत यह षट्कारक प्रकरण मोक्षमार्ग में ऐसा उपयोगी विषय है, जिसके जाने बिना वस्तु की कारण-कार्य व्यवस्था का ज्ञान अधूरा है। इससे आत्मोपलब्धि में हेतुभूत स्वावलम्बन का मार्ग सुलभ होता है। षट्कारकों का विशद विवेचन प्रवचनसार गाथा १६, पंचास्तिकाय गाथा ६२ तथा ६४ एवं ४७ शक्तियों में आई षट्कारक शक्तियों में विशेष किया है।" ___इसप्रकार जीवराज के उद्बोधन को सुनकर सभी को भारी संतोष हआ। इसी विषय पर अध्यापक श्री जिनसेनजी ने मंगलाचरण करते हए संगोष्ठी के रूप में प्रश्नोत्तर शैली में यही षट्कारक का विषय प्रस्तुत किया। 'स्वात्मोपलब्धि प्राप्त स्वाश्रित, स्वयं से सर्वज्ञता। स्वयंभू बन जाता स्वतः अरु स्वयं से समदर्शिता।। स्वतः होय भवितव्य, षट्कारक निज शक्ति से । उलट रहा मन्तव्य, मिथ्यामति के योग से ।। इस मंगलाचरण में कहा गया है कि स्वानुभूति, सर्वज्ञता, वीतरागता आदि निज कार्य के षट्कारक निज शक्ति से निज में ही विद्यमान हैं; किन्तु मिथ्या मान्यता के कारण अज्ञानी अपने कार्य के षट्कारक पर में खोजता है। यही मिथ्या मान्यता राग-द्वेष की जनक है। अतः कारकों का (46)

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