Book Title: Neev ka Patthar
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 54
________________ नींव का पत्थर अज्ञानी की मनोवृत्ति को व्यक्त करते हुए आचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजी ने मोक्षमार्गप्रकाशक में तो यहाँ तक लिखा है कि 'अज्ञानी जीव स्वयं तो महन्त रहना चाहता है और अपना दोष कर्मों के माथे मढ़ता है सो यह अनीति तो संभवै नाहीं ।' १०६ एक दिन कर्मकिशोर ने सोचा- "जीवराज पहले से बहुत कुछ बदला-बदला सा लगता है, उसने मोहनी का साथ तो छोड़ ही दिया और अपनी पूर्व पत्नी समताश्री को पुनः अपना लिया है। मोहनी की संतान अनुराग, हास्य, रति और माया आदि से भी सम्बन्ध विच्छेद का संकल्प करके पुत्र विराग और पुत्री ज्योति से स्नेह करने लगा है। अब वह बहुत शान्त, सुखी और सदाचारी हो गया है। एक दिन उससे मिलकर मैं यह जानना चाहता हूँ कि जब वह बीमार था तब उसकी मनःस्थिति कैसी थी। वह अपनी भटकन के बारे में क्या सोचता था और अब उसकी भावी जीवन के प्रति क्या-कैसी योजना है? वह अपना शेष जीवन किस तरह जीना चाहता है?" यह सब जानने के लिए कर्मकिशोर जीवराज के पास पहुँचा । यद्यपि जीवराज की भटकन में और बीमारी में कम-बड़ रूप से कर्मकिशोर के पूरे परिवार का निमित्तपना था; फिर भी उसने कर्मकिशोर के प्रति साम्यभाव रखा और उसका स्नेहपूर्वक स्वागत किया; क्योंकि अब उसे यह जानकारी हो गई थी कि कर्मकिशोर और इनके परिवार की कोई गल्ती नहीं है। मैं स्वयं ही अपनी भूल से भटका था और स्वयं ही अपनी भूल सुधार कर सही रास्ते पर आया हूँ। जीवराज से स्नेह पाकर कर्मकिशोर गद् गद् हो गया; क्योंकि उसे जीवराज से ऐसे स्नेह की आशा नहीं थी। वह सोचता था कि “मेरे कारण ही तो प्रारंभ में इसकी ऐसी दुर्दशा हुई थी, अतः उससे मुझे उपेक्षा ही मिलेगी;” पर ऐसा नहीं हुआ। इसकारण वह मन ही मन बहुत खुश था। १. मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ३१२ (54) क्या मुक्ति का मार्ग इतना सहज है ? १०७ कर्मकिशोर ने जीवराज से पूछा - "जीवराज! मेरी बहिन मोहनी और उसके साथ वेदनी आदि ने आपको इतना परेशान किया, आपकी बदनामी में कारण बनी, छलबल से आपका धन अपहरण किया और जब आपकी आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई तो ऐसी दुर्दशा की हालत में आपसे मुँह मोड़ लिया, आपके साथ दुर्व्यवहार करने लगी' आपकी उपेक्षा कर दी। फिर भी आप हम लोगों के साथ ऐसा सद्व्यवहार कर रहे हो ? ऐसा सम्मान हमारे प्रति आपके हृदय में है, ऐसा साम्यभाव ! ऐसी सहज उदारता की संभावना हमें आपसे नहीं थी। हम डर रहे थे कि पता नहीं आप हमारे साथ कैसा सलूक करेंगे? हम सोच रहे थे - आप हमसे पूछेंगे - कहो, कर्मकिशोर ! तुम्हारे साथ कैसा सलूक किया जाय ? परन्तु आपने ऐसा कुछ नहीं किया, इसका राज क्या है? पहले तो मैं तुमसे यह जानना चाहता हूँ? मोहनी ने तो मुझे तुमसे मिलने से ही मना किया था कि 'मत जाओ अपमानित होने के लिए। वह तुम्हें धक्का मारकर निकलवा देगा। पता नहीं इन मनुष्यों की अपने बारे में ऐसी गलत धारणा क्यों है? गल्तियाँ खुद करते हैं, दोष दूसरे के माथे मढ़ते हैं?' मोहनी ने यह भी बताया कि “देखो न! मैंने तो उसे बुलाया नहीं था, स्वयं ने ही मुझ पर मोहित होकर अपनी समता जैसी सुशील सुन्दर और सर्वगुण सम्पन्न धर्मपत्नी को छोड़कर मुझे अपनाया। न केवल सर्वसाधारण की तरह मात्र सम्पर्क किया, बल्कि मेरे प्रति उसके मन में ऐसा स्नेह उमड़ा, पागलन छाया कि वह सब सुध-बुध ही खो बैठा। उसका ऐसा स्नेह और आकर्षण देखकर मैंने भी सब ओर से अपना ध्यान हटाकर उसे ही अपना सर्वस्व समर्पण कर दिया। मुझ अनजान को क्या पता था कि ये मनुष्य ऐसे भावुक और धोखेबाज होते हैं? कुछ दिनों बाद जब मैं उसके कई बेटे-बेटियों की माँ बन गई तो वह पता नहीं किसके कहने-सुनने से, किसके बहकावे में आकर पुनः अपनी पूर्व पत्नी समता को सोते-सोते में याद करने लगा । तब मैंने ऐसा अनुभव किया कि 'मेरी तरफ इसकी रुचि

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