Book Title: Neev ka Patthar
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 29
________________ नींव का पत्थर इस कारण उक्त पाँचों कारणों के रहते हुए भी वस्तु स्वातंत्र्य का सिद्धान्त निर्बाध है।" स्वतंत्रकुमार ने पूछा - "उपादान कारणों में जो तत्समय की योग्यता रूप कारण की बात तो ठीक है; परन्तु निमित्त कारणों में जो प्रेरक निमित्तों की बात कही जाती है, क्या उनके कारण भी कार्य प्रभवित नहीं होता? समताश्री ने बताया - “निमित्त कारण अपने से भिन्न उपादान के परिणमन में सहकारी अर्थात् सहचारी होने पर भी उसका किंचित्मात्र भी कर्ता नहीं है। उपादान कारण पूर्ण स्वतंत्र स्वाधीन व स्वशक्ति सामर्थ्य से युक्त है; क्योंकि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कार्य करने में पूर्णतः असमर्थ है। वस्तुतः उपादानकारण परिणमन शक्ति से रहित है वह कर्ता कहलाने का अधिकारी नहीं हो सकता। एक कार्य के दो कर्ता कदापि नहीं हो सकते तथा एक द्रव्य युगपदएककाल में दो कार्य नहीं कर सकता । प्रत्येक द्रव्य अपना कार्य स्वतंत्ररूप से स्वयं ही करता है। स्वयं अपनी शक्ति से परिणमित होती हुई वस्तु में अन्य के सहयोग की अपेक्षा नहीं होती, क्योंकि वस्तु की शक्तियाँ पर की अपेक्षा नहीं रखतीं। इस आधार से हम कह सकते हैं कि - यदि उपादान कारण में स्वयं योग्यता न हो तो निमित्त उसे परिणमित नहीं करा सकता। विश्व की समस्त वस्तुएँ (द्रव्य) अपनी-अपनी ध्रुव व क्षणिक योग्यतारूप उपादान सामर्थ्य से भरपूर हैं। कहा भी है - कालादि लब्धियों से तथा नाना शक्तियों से युक्त द्रव्यों (वस्तुओं) को स्वयं परिणमन करने में कौन रोक सकता है? कार्य की उत्पत्ति के समय तदनुकूल निमित्त उपस्थित अवश्य रहेंगे किन्तु वे स्वयं शक्ति सम्पन्न उपादान को कार्यरूप परिणमित नहीं कराते। १. पंचास्तिकाय गाथा १९ एवं गाथा ५४ २. समयसार कलश - ५१ एवं ५४ ३. समयसारगाथा ११६-१२० की टीका ४.कार्तिकेयानुप्रेक्षा गाथा २१९ राष्ट्रीय स्वतंत्रता और वस्तुस्वातंत्र्य अतः एक द्रव्य दूसरे द्रव्य के कार्य करने में पूर्णतः असमर्थ हैं, अकर्ता हैं। यही वस्तु की स्वतंत्रता है। स्वतंत्र वस्त व्यवस्था में पर का किंचित मात्र भी हस्तक्षेप नहीं है। गणतंत्र ने पूछा - "निमित्तों को कर्ता मानने से क्या-क्या हानियाँ हैं ?" उत्तर - “१. निमित्तों को कर्ता मानने से उनके प्रति राग-द्वेष की उत्पत्ति होती है। २. यदि धर्मद्रव्य को गति का कर्ता माना जायेगा तो निष्क्रिय आकाशद्रव्य को भी गमन का प्रसंग प्राप्त होगा, जो कि वस्तुस्वरूप के विरुद्ध है। ३. यदि गुरु के उपदेश से तत्त्वज्ञान होना माने तो अभव्यों को भी सम्यग्ज्ञान की उत्पत्ति मानने का प्रसंग प्राप्त होगा। ४. निमित्तों को कर्त्ता मानने से सबसे बड़ी हानि यह है कि - अनादि निधन वस्तुयें भिन्न-भिन्न अपनी मर्यादा में परिणमित होती हैं, कोई किसी के अधीन नहीं है। कोई किसी के परिणमित कराने से परिणमित नहीं होती। इस प्रकार वस्तुस्वातंत्र्य के मूल सिद्धान्त का हनन हो जायेगा। ऐसे अनेक आगम प्रमाण हैं, जिनसे निमित्तों का अकर्तृत्व सिद्ध होता है? १. तीर्थंकर ऋषभदेव जैसे समर्थ निमित्त की उपस्थिति से भी मारीचि के भव में उपादान की योग्यता न होने से भगवान महावीर के जीव का कल्याण नहीं हुआ तथा महावीर स्वामी के दस भव पूर्व जब सिंह की पर्याय में उनके उपादान में सम्यग्दर्शन रूप कार्य होने की योग्यता आ गई तो निमित्त तो बिना बुलाये आकाश से उतर आये। १.मोक्षमार्गप्रकाशक : तृतीय अध्ययन, पृष्ठ ५२ (29)

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