Book Title: Neev ka Patthar
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 26
________________ राष्ट्रीय स्वतंत्रता और वस्तुस्वातंत्र्य समता श्री प्रवचनार्थ आसन पर बैठी ही थीं कि उनकी नजर सामने बैठे समधी स्वतंत्रकुमार और जवाँई गणतंत्रकुमार पर जा पड़ी। महिला कक्ष में ज्योत्स्ना भी बैठी थी। उन्हें प्रवचन में आया देखकर - समताश्री ने मन ही मन प्रसन्न होते हुए उनका परिचय कराने हेतु हँसते हुए कहा - "स्वतंत्रता प्रेमियों को १५ अगस्त और २६ जनवरी के आजादी के दिन इतने महत्वपूर्ण हो गये हैं कि उन दिनों में जन्में सहस्त्रों शिशुओं के नाम भी स्वतंत्रकुमार और गणतंत्रकुमार रखे गए। जिसके प्रमाण के रूप में हमारे सामने स्वतंत्रकुमार और गणतंत्रकुमार दोनों बैठे हैं। ऐसे स्वतंत्रता प्रेमी परिवार के महानुभाव श्री स्वतंत्रकुमारजी और चि. गणतंत्रकुमार आज धर्मसभा में पधारे हैं, हम उनका स्वागत करते हैं और प्रतिदिन पधारने के लिए आमंत्रित करते हैं। संयोग से बेटी ज्योत्स्ना के श्वसुर और पति का जन्मदिन भी १५ अगस्त और २६ जनवरी है, इसीकारण उसके स्वसुर का नाम श्री स्वतंत्रकुमार और पति का नाम चि. गणतंत्रकुमार रखा गया होगा। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए समताश्री ने कहा - "यद्यपि प्रजातंत्रीय प्रणाली के संदर्भ में स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है' - यह नारा अति उत्तम है। इस नारे ने ही सैकड़ों वर्षों से परदेशियों की पराधीनता में जकड़ी जनता के कानों में जागरण का मंत्र फूंककर उसे पराधीनता से मुक्त कराया है। एतदर्थ इसमें हुई कुर्बानी की जितनी भी प्रशंसा की जाय कम है। देश को परदेशियों की गुलामी से सदा मुक्त रहना ही चाहिए; परंतु हम यहाँ जिस वस्तु स्वातंत्र्य के सिद्धान्त की बात कर रहे राष्ट्रीय स्वतंत्रता और वस्तुस्वातंत्र्य हैं, वह धर्म और दर्शन में प्रतिपादित वस्तु स्वातंत्र्य का सिद्धान्त इस राष्ट्रीय स्वतंत्रता से बिल्कुल भिन्न है। दोनों में दीपक और सूरज जैसा महान अन्तर है। यदि राष्ट्रीय स्वतंत्रता दीपक है तो वस्तुस्वातंत्र्य का सिद्धान्त सूरज है। वस्तुतः राष्ट्रीय स्वतंत्रता का उस आध्यात्मिक वस्तुस्वातंत्र्य के सिद्धान्त से कोई सम्बन्ध नहीं है; क्योंकि यह राष्ट्रीय स्वतंत्रता तो केवल मानव समाज तक ही सीमित है। वह भी मात्र विदेशी शासन-प्रशासन एवं भारतीय राजतंत्रीय और जागीरदारी, जमीदारी प्रथा से आजाद कराने तक ही सीमित है। साथ ही स्वदेशी प्रजातंत्रीय प्रणाली में और शासकीयप्रशासकीय नियमों का निर्वाह करने, कानूनों की पालना करने की पराधीनता तो इसमें भी कम नहीं है। इतना ही नहीं पारिवारिक भरण-पोषण के लिए नौकरी चाकरी करने की परतंत्रता भी है ही। अतः इस लौकिक स्वतंत्रता से वह आध्यात्मिक वस्तुस्वातंत्र्य की बात बिल्कुल निराली है। दोनों बिल्कुल भिन्न-भिन्न हैं। लौकिक आजादी के सम्बन्ध में एक व्यंगकार ने तो व्यंग में यहाँ तक कह डाला कि - "यह कैसी आजादी? जिसमें मनमाने ढंग से सड़क पर चलने की भी आजादी नहीं। जगह-जगह नोटिस बोर्ड लगे 'चलो सड़क की बाँयी पटरी' खाने-पीने की आजादी नहीं, यदि भाँग खाकर या शराब पीकर रोड़ पर निकले तो पुलिस पकड़ कर कोतवाली में बिठा देती है, जहाँ देखो वहाँ 'नो एन्ट्री' के नोटिस बोर्ड लगे हैं। पालतू पशुओं जैसे बन्धन हैं; फिर भी कहते हो कि हम आजाद हैं।" खैर ! ___ व्यंगकार ने तो कुछ अधिक ही कह दिया; फिर भी पराधीनता तो कदम-कदम पर है ही। इसलिए हम दृढता से कह सकते हैं कि वस्तुस्वातंत्र्य के सिद्धान्त से इस लौकिक स्वतंत्रता और परतंत्रता का दूर का भी सम्बन्ध नहीं है; क्योंकि यह मात्र मानव के व्यवहारिक जीवन की बातें हैं और वह आध्यात्मिक सिद्धान्त है, जिसे समझने से और जिसकी श्रद्धा से हम (26)

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