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नन्दिसूत्रम् ।।
॥२५॥
प्रस्तावना।
ते प्रतिपाति अवधिज्ञान समजवु. समग्र लोकने पण जाणीने अवधिज्ञान चाल्युं जाय तेम पण बने. कारण के प्रतिपातिनो उत्कृष्ट विषय समग्र लोक छे.
[६] अप्रतिप्राति-अवधिज्ञानः- लोकावधि करतां जरा पण आगळ वधे अर्थात् अलोकाकाशना एक प्रदेशने जोवानुं सामर्थ्य जेमां होय ते अवधिज्ञान अप्रतिपाति समजवु. आम छ भेदनुं वर्णन समाप्त थयु. हवे द्रव्यादि। विषयना भेदथी अवधिज्ञाननो भेद जणावे छे. अर्थात् द्रव्य, क्षेत्र, काळ तथा भावनो जघन्य अने उत्कृष्टथी केटलो विषय होय ते जणावे छे. जघन्य
उत्कृष्ट [१] द्रव्य:- अनन्त रूपी द्रव्य
[१] सर्व रूपी द्रव्य [२] क्षेत्र:- अंगुलनो असंख्यातमो भाग [२] अलोकमां पण लोकप्रमाण असंख्यात खंडो [३] कालः- आवलिकानो असंख्यातमो भाग [३] असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी [४] भाव:- अनन्त भाव
[४] अनन्त भाव (सर्व भावोनो अनन्तमो भाग) पण आ अनन्त भाव जघन्यथी जे अनन्त भाव छ तेना करतां अनन्तगुणा समजवा. ते पछी एक संग्रहगाथा छे. जेमां देव, नरक अने तीर्थकर भगवंतो अवश्य अवधिज्ञानवाळा होय छे. ज्यारे बीजाओ माटे तेवो नियम नथी ते जणावेल छे. ते गाथा चूर्णिकारे लीधेली नथी. आम विविध भेदपूर्वक अवधिज्ञान- निरूपण पूर्ण करे छे.
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