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नन्दिसूत्रम् ।
GI प्रस्तावना।
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सार्वत्रिक आगमर्नु मुद्रण थइ रघु छे. अमारो आशय ए नथी के आगमोने कबाटमां राखी मूकवां. पण आत्मानी योग्यता जोइने ज गुरुमहाराज आगमोनुं ज्ञान आपे छे अयोग्य आत्माने आपवाथी तो जैनशासननी हीलना थाय छे. केमके अयोग्य आत्मा तेनो दुरुपयोग करतां पण अचकातो नथी. अत्यारना कहेवाता केटलाक पंडितो तेना प्रत्यक्ष पूरावारूप छे. वळी तेवाओनी कहेवातो पंडिताइ पण धणां स्थलोए सुधरेली मूर्खाइथी जुदी पडी शकती नथी. आम आ रीते विचारता संपूर्णपणे मुद्रण अने तेनो प्रचार पसंद पडे नहीं. मुद्रण थाय तो पण तेनो प्रचार तेनी योग्यता धरावनाराओ सारी रीते लाभ उठावी शके तेटला पूरतो मर्यादित होवो जोइए. ____ आजे छेदसूत्रो के जे अत्यंत गुप्त राखवा जेवां छे. साधुओने पण तेनी योग्यता जोइने ज तेनो पाठ आपवामां आवे छे. साधुओनी परीक्षा माटे अपरिणामी, अतिपरिणामी अने परिणामी एम व्रण प्रकारो पाडवामां आवे छे. तेमां अपरिणामी अने अतिपरिणामीओ माटे छेदसूत्र भणवानो अधिकार नथी. आथी समकितदृष्टि मुनिओने जेना तेना हाथमा छेदसूत्रो जाय ते पसंद नथी. ते हकीकत तेओनी शास्त्रानुसारिता बतावी रही छे. पण तेनी सामे
"इस संबंधमे तो यह बात है कि प्रायः प्रत्येक शास्त्र ही गोपनीय है। अधिकारका ध्यान सर्वत्र ही रखना चाहिए । क्या अन्य सूत्र अनधिकारीको प्रवृत्त किये जा सकते है ? नहीं। प्राचीनकालमें जैसे लेखन था वैसे ही आज के युग में मुद्रण है। गुरुमुख से चली आने वाली श्रुतपरम्परा जिस दिन कलम और दवात का सहारा लेकर पुस्तकारूढ हुइ, उसी दिन उसकी गोप्यता का प्रश्न समाप्त हो गया। जब श्रुत पुस्तकारूढ है तो वह
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