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नन्दिसूत्रम् । ॥४१॥
आ नंदीसूत्र घणु ज प्राचीन छे, अने तेना कर्ता देववाचकगणि पू. दृष्यगणिना शिष्य छ, अने जेओ देवधि
प्रस्तावना। गणि क्षमाश्रमण करतां जुदा छे. ते माटे नयचक्रनी प्रस्तावनामां अमे विचार करेल छे. तेना कर्ता देववाचकगणि पूर्वधर हता. तेमज देवर्धिगणि श्रमाश्रमण करतां पूर्ववर्ती हता. वर्तमान 'नंदी' करतां पण प्राचीन कोई 'नंदी'सूत्र अवश्य होवु जोइए. तेवा अनुमानने अवकाश छे एम अमे मानीए छीए. जो के आना पर भाष्यनी कल्पना अमे नयचक्रनी प्रस्तावनामां करेल छे. पण ते वात एकली कल्पनामात्रथी योग्य लागती नथी. अर्थात् वधु प्रमाण न मळे त्यां सुधो 'नंदीभाष्यनी' कल्पना करवी योग्य लागती नथी. 'नंदी'चूर्णि ना कर्ता जिनदासगणिमहत्तर होय तेम लागत नथी. कारण के शब्दशः मलगिरि मनीज टीका छे. तेना विस्तारवाळा भागने छोडी देवायो छे. तेथी अभ्यासनी अनुकूळता माटे कोइए आवी संक्षिप्त नोंध करी हशे. जे अवचूरिमां गणाइ गइ छे. पण वास्तविकताए ए पू. मलयगिरि मनी नंदीनी टीकार्नु संक्षिप्त रूप छे कारण के अवचूरिमां जे मात्र पू. मलयगिरि म ने ज लागु पडे छे, तेवो उल्लेख एमनो एम ज मळी आवे छे, माटे प्रस्तुत ग्रन्थ संक्षिप्तीकरण छे पण स्वतंत्र रचना नथी. दाखला तरीके पृ, २३ 'यथा वस्तुनो नित्यता तथा धर्मसंग्रहणीटीकायां सविस्तरम् अभिहितमिति न इह भूयोऽभिधीयते मा भूद् ग्रन्थगौरवमिति कृत्वा' पृ. ४७...' उच्यते इह कर्मणां प्रत्येकमनन्तानन्तानि रसस्पर्धकानि || ॥४१॥ भवन्ति, रसस्पर्धकस्वरूपं च कर्मप्रकृतिटीकायां सप्रपंचमुपदर्शितमिति न भूयो दर्श्यते । __आ सिवाय प्रथम शरु थती अनेक गाथाओ जे पू. मलवगिरि म.नी टीकामां छे. तेमांनी नीचे प्रमाणेनी सात ||
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