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नन्दिसूत्रम् ।
॥२९॥
ते पछी अवग्रहादिनी काळमर्यादा बतावी छे अने मल्लक (कोडीयुं) आदि दृष्टांतथी तेनी समजण आपी विषय स्पष्ट कर्यो छे. ते पछी तेना द्रव्यादि चार विषयो बताव्या छे. जेमके शब्द स्पृष्ट ग्रहण कराय छे, रूप अस्पृष्ट ग्रहण कराय छे. आम प्राप्यकारी अने अप्राप्यकारीना भेद बताव्या छे पण प्राप्यकारी इन्द्रियोना विषयमां पण शब्द करतां गंध, रस अने स्पर्शमां विशेषता बताववामां आवी छे, जे विचार जैन दर्शन सिवाय अन्य दर्शनमां भाग्ये ज जोवा मळशे. आम मतिज्ञान परोक्ष छे, तेनुं निरूपण समाप्त करे छे.
अहीं उपर जणावेल भेदोनी सूचि तेमज पर्याय शब्दो नीचे मुजब जाणी लेवा.
श्रुतनिश्रित मतिज्ञान
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व्यञ्जनावग्रह ४
अवग्रह
अर्थावग्रह
६
इद्दा
I
६
1
अवाय
I
६
धारणा
I
६
व्यञ्जनावग्रहना चक्षु अने मनने छोडीने चार इन्द्रियवडे ४ भेद अर्थावग्रहादि प्रत्येकना ५ इन्द्रिय अने मन एम छ वडे भेद गणवाथी २४ भेद. एम २८ भेद मतिज्ञानना थाय छे.
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प्रस्तावना |
॥२९॥
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