Book Title: Namokar Mahamantra Ek Anushilan
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन व्यक्तिविशेष अनादि-अनन्त नहीं होने से सार्वकालिक नहीं होते, क्षेत्रविशेष सम्बन्धित होने से सार्वभौमिक नहीं होते और जातिविशेष से सम्बन्धित होने से सार्वजनिक नहीं हो सकते; पर पंच परमेष्ठी अनादि से होते आए हैं और अनन्तकाल तक होते रहेंगे, अतः सार्वकालिक हैं; ढाई द्वीप में सर्वत्र ही होते हैं, अत: सार्वभौमिक हैं और जाति विशेष से सम्बन्धित न होने से सार्वजनिक भी हैं। पंच परमेष्ठी का आराधक होने के कारण ही जैनदर्शन सार्वकालिक, सार्वभौमिक एवं सार्वजनिक है । जैनदर्शन के अनुसार निज भगवान आत्मा की साधना करनेवाले ही साधु कहलाते हैं और साधुओं में ही जो वरिष्ठ होते हैं, उन्हें आचार्य और उपाध्याय पद प्राप्त होते हैं। आत्मा की साधना से पूर्णता को प्राप्त पुरुष ही अरिहन्त और सिद्ध बनते हैं । इसप्रकार आत्मसाधक और अरिहन्त व सिद्ध ही पंच परमेष्ठी हैं, जिन्हें इस णमोकार महामंत्र में नमस्कार किया गया है। इस णमोकार महामंत्र की दूसरी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें किसी से कुछ मांग नहीं की गई है, इसमें भिखारीपन नहीं है; पूर्णत: निःस्वार्थभाव से पंच परमेष्ठी के प्रति भक्तिभाव प्रकट किया गया है, उसके बदले में कुछ भी चाहा नहीं गया है। जगत के अन्य जितने भी मंत्र हैं, उन सभी में कुछ न कुछ मांग अवश्य जाती रही है। और कुछ नहीं तो यही कहा जायेगा कि सर्व शान्तिं कुरुकुरु स्वाहा । यद्यपि इसमें भी व्यक्तिगत रूप से कुछ भी नहीं चाहा गया है, सबके लिए पूर्ण शान्ति की कामना की गई है, जो बहुत अच्छी बात है; क्योंकि जो कुछ चाहा गया है, वह सबके लिए चाहा गया है, सबके हित के लिए चाहा गया है; विषय - कषाय की पूर्ति की कामना नहीं की गई है, शान्ति की ही कामना की गई है; तथापि चाहा तो गया ही है, मांग तो की ही गई है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 116