Book Title: Namokar Mahamantra Ek Anushilan Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 6
________________ णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन उक्त सन्दर्भ में जब हम इसके अर्थ पर विचार करते हैं तो एक बात अत्यन्त स्पष्टरूप से सामने आती है कि इसमें पंचपरमेष्ठी को नमस्कार करने के अतिरिक्त और कुछ भी तो नहीं कहा गया है। णमोकार महामंत्र का सीधा-सादा अर्थ इसप्रकार है अरहन्तों को नमस्कार हो, सिद्धों को नमस्कार हो, आचार्यों को नमस्कार हो, उपाध्यायों को नमस्कार हो और लोक के सर्वसाधुओं को नमस्कार हो। - ऐसा होने पर भी इसकी इतनी लोकप्रियता क्यों है ? गम्भीरता से विचार करने पर एक बात अत्यन्त स्पष्टरूप से ज्ञात होती है कि इसमें किसी व्यक्ति विशेष को नमस्कार नहीं किया गया है, अपितु उन सभी महान आत्माओं को स्मरण किया गया है, जिन्होंने निज भगवान आत्मा की आराधना कर पंच परमेष्ठी पद प्राप्त किये हैं, कर रहे हैं और भविष्य में करेंगे। व्यक्तिविशेष की महिमा से सम्प्रदाय पनपते हैं और गुणों की महिमा से धर्म की वृद्धि होती है। इसीलिए तो हमारे यहाँ कहा गया है कि - जिसने राग-द्वेष कामादिक जीते सब जग जान लिया। सब जीवों को मोक्षमार्ग का निस्पृह हो उपदेश दिया। बुद्ध, वीर, जिन, हरि, हर, ब्रह्मा या उसको स्वाधीन कहो। भक्ति भाव से प्रेरित हो यह चित्त उसी में लीन रहो। जो सर्वज्ञ है, वीतरागी है और हितोपदेशी है; हम तो उनके ही चरणों में सिर नवाते हैं, वह चाहे महावीर हो, चाहे बुद्ध हो, चाहे जिन हो, चाहे हरि हो, चाहे हर हो, चाहे ब्रह्मा हो। चाहे कोई भी हो, पर यदि वे सर्वज्ञ-वीतराग़ी हैं तो हमारे लिए वन्दनीय हैं, प्रातःस्मरणीय हैं। ___मात्र व्यक्तिविशेष की आराधना करने वाला धर्म सार्वकालिक नहीं हो सकता, सार्वभौमिक नहीं हो सकता और सार्वजनिक भी नहीं हो सकता।Page Navigation
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