Book Title: Nalayanam
Author(s): Yashovijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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________________ S सप्तमे सर्गः५ // 27 // / / 28 // // 29 // // 30 // दमयन्त्यो विवादः॥ // 167 // IFIM ISHI VISI PIHEIR ISIS LEEIG नल इत्येव यः सम्यक् त्वां प्रसादयितुं मतिः / प्रसीद गर्भदासी ते तद् विलध्या न केशिनी पर्यन्तावसरः सोऽयं न विलम्बः क्षमोऽधुना / इयमद्य भवन्मूला विपत्तिर्भीमजन्मनः पश्चादपि प्रियाशोकं हृदयेन करिष्यसि / तद् भज प्रकटीभावं राजासि स नलो यदि एवमुक्तः स केशिन्या दयितामृत्युशङ्कितः / निळलीकमिवात्मानं कर्तुं नलतयावदन भर्तारमपरं भैमी भूयोऽपि हि भजिष्यति / इति देशान्तरे वार्ताप्रकाशोऽभूद् गृहे गृहे किमन्यदिदमाकर्ण्य मनसा विस्मयाकुलः / इह स्वयमयं दैवादयोध्यापतिरागतः इदं मत्कारणेनैव कृतं वा स्वेच्छयानया / इति न ज्ञायते सम्यक् विश्वासः स्त्रीषु कीदृशः एकाकिनी सुरूपा च युवतिर्विगतत्रपा / केन नाक्रम्यते पुंसा कं वा न भजते स्वयम् भजतां ऋतुपर्ण वा कुरुतां वा स्वयम्वरम् / ममानुमतमेतस्याः कामवृत्तिरतः परम् इति भीमभुवा देव्या श्रूयमाणा सबाष्पया / गिरं वदति भूपाले व्योनि वागभवद् द्रुतम् राजन् राजन् ! नलमलमिदं युज्यते नैव वक्तुं पुण्यश्लोकस्त्वमसि भुवने सचदुग्धाम्बुराशिः / वैदर्भीयं युवतिषु सतीचक्रचूडामणिश्च त्रैलोक्येऽस्मिन् क इव युवयोर्वेत्ति माहात्म्यपारम् राज्यभ्रंशं विरहविपदं दौर्मनस्यं समन्तादेतत्पापः सकलमकरोत् क्रूरकर्मा कलिर्वाम् / युष्मत्पुण्यैः पुनरपि जितः स प्रनष्टो दुरात्मा श्रेयः कालः पुनरुपनवः साम्प्रतं क्षेममस्तु // 32 // // 33 // // 34 // // 35 // // 36 // ISII IIEISHI - II - IBSIT Isle // 37 // // 38 // // 16 //

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