Book Title: Nalayanam
Author(s): Yashovijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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________________ अष्टमे पुष्कराय स्कन्धे सर्गः४ राज्याई ददाति नलः॥ // 176 // all PISSIMISSII-III II II Ile धन्याः स्वदोषवक्तारो धन्याः स्वगुणलज्जिताः / धन्याः स्वकार्यनिश्चिन्ता धन्याः स्वजातिपोषकाः // 10 // तद् विमुश्च मनःखेदमावास्यां सांप्रतं जितम् / विभिन्न सूतवद्भूयः कुटुम्बं मिलितं हि नः // 11 // इत्युक्त्वा गाढमालिङ्ग्य समाघ्राय च मूर्द्धनि / अर्द्धराज्यधरं चक्रे पुष्कर कलिनाशनः // 12 // त्रिखण्डभरतैश्वर्य तस्यैवं कुर्वतः सतः / जज्ञे नहुषनाभागमुख्यानां जर्जरं यशः // 13 // पुण्यहानिकृतः स्वर्गात् पुण्यक्षेत्रे महीतले / तस्य सौराज्यतः पुंसां सविशेषस्पृहाभवत् // 14 // श्रुतशीलमहामात्यं कृत्वा राज्यधुरन्धरम् / सिषेवे केवलं नित्यं धर्मकामौ स पार्थिवः // 15 // कदाचिदपि केशिन्या विरहोद्वेगवर्णनैः / कदाचितुपर्णेन समं कुब्जत्ववार्त्तया इत्थमन्यैरपि क्रीडाविनोदैनन्दयन् जगत् / समयं गमयामास सदासुखमयं नलः // 17 // युग्मम् // अन्यदा सहितो देव्या कल्याणिकमहोत्सवे / ययौ तमोपहे तीर्थे प्रणन्तुं परमेष्ठिनम् // 18 // तत्र तद्धवनं दृष्ट्वा कुर्वन् चरणचारिताम् / भेजे वैनयिकं वेषं सावधानेन चेतसा // 19 // ततो धर्मद्रुमस्यास्य दृढभक्क्यावनीपतिः / प्रदक्षिणक्रमव्याजादालवालमचीकरत् // 20 // सालङ्कारैश्च शब्दार्थैः स्तुत्वा स परमेष्ठिनम् / तद्भक्तौ विदधे भूमि सकलां दृष्टिगोचराम् // 21 // सहर्षेण महर्षीणां कृत्वा चरणपूजनम् / कृतार्थां नृपतिर्मेने मनसा निजसंपदम् // 22 // इत्थमक्लिष्टमष्टाहमाराध्य परमेष्ठिनम् / सभार्यो निषधः स्कन्धात् सम्राडवततार सः // 23 // // 176 //

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