Book Title: Nalayanam
Author(s): Yashovijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 392
________________ अष्टमे IISIS स्कन्धे सर्गः३ निजां राजधानी प्राप्तो नला॥ // 175 // ale III III-IIIIII ISIF ||sile पुण्यपुण्यजनाकीर्णा सकर्णहृदयङ्गमा / विमानोम्नि सञ्जाता जङ्गमेवापरा पुरी // 22 // अयं गुरुः पिता माता भर्ता मित्रं च भूपतिः / यद् वा सर्वस्वमसाकं वीरसेनसुतो नलः // 23 // इत्यानन्दस्खलत्कण्ठैः प्रवदद्भिः परस्परम् / दृश्यमानः पुरीलोकैः प्राप राजपथं नृपः // 24 // युग्मम् // अस्तूयत स सानन्दं वन्दिवृन्दैरमन्दधीः / उत्तंसितभुजस्तम्भैरम्भोजासनसन्निभः // 25 // जय द्विजनिषेवित ! द्विजनिरस्तमुक्ताफलद्विरेफसुमनःस्रजां द्विरसनाधिनाथोपम ! / द्विपाधिपसमभ्रम ! द्विजपतिस्वरूपानन ! द्विषत्कटककाननक्षयदवानल ! त्वं नल ! // 26 // अर्कतप्ततरुमूलवारिभिर्लङ्घनेन गिरिकन्दरीजुषाम् / निद्भुतस्तनुषु सर्ववैरिणां वैरसेनिभिषजा मदज्वरः // 27 // अलिरिव कमलिन्यां नर्मदायामिवेभः सर इव ललनायां धिष्ण्यपत्यामिवेन्दुः / रस इव कवितायां मन्त्रशक्त्यामिवार्थः प्रविश निजनगर्यां सुप्रवेशस्तवास्तु // 28 // इत्थं पठविविधमागधवर्णनाढ्यं प्रीतः प्रविश्य कुलराजगृहं स राजा / आस्थानसीमनि सुवर्णमयेऽधितस्थौ सिंहासने समदसिंहसमानसत्वः // 29 // तत्र प्रणीतधनरत्नसुवर्णवर्षाहर्षाकुलाः सकलभूमिभुजः प्रणेमुः / तं स्वोचितेन विधिना भुवनाधिनाथं तत्प्रीणिताः प्रकृतयोऽपि यथाक्रमेण ननृतुरननृताभिर्भङ्गिभिर्वारवध्वो जगदुरगदमुख्यं मङ्गलं गोत्रवृद्धाः / IFI AISI AII 4 MII SIHII // 175 //

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