Book Title: Nalayanam
Author(s): Yashovijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 396
________________ | बष्टमे स्कन्धे 10 // 37 // कल्याणिक महोत्सवे गतो नलः॥ | सर्गः४ // 38 // || // 177 // // 39 // तं वीक्ष्य विक्षिप्तमना मुनीन्द्र महीमहेन्द्रः सहितः सुदत्या / अहो ! तपः कष्टमहो दृढत्वमहो! मुमुक्षेति भृशं शशंस पार्श्वस्थया च परिचारिकयेव देव्या सजीकृतोपकरणः करणं तदीयम् / भक्त्या स्वयं स ममवाहयदाशु यत्नादुत्कीलितभ्रमरकण्टककोटिभागः मुनिवरवरिवस्यावश्यवृत्ति वितन्वन् नृपतिरपि तदानीमात्मना सौख्यमाप / स च सपदि समन्ताचण्डवातः शशाम प्रकटितरुचिरुचैरिन्दुरप्युजगाम हृढतरमपि जित्वा दुष्ट सत्त्वोपसर्ग स्वयमपि मुनिसिंहः संहृतध्यानमुद्रः / पदमिव मुदितायां भव्यसत्त्वे विधातुं प्रशमपुलकिताभ्यां लोचनाभ्यामपश्यत् अनुसतानव मङ्गलमस्तु ते जय मुनीश ! निशाकरनिर्मल / / अभिननन्द तमिन्दुमुखः स्वयं नृपतिरित्थमुतथ्यसमानधीः एतत् किमप्यनवमङ्गलमङ्गलाई यत् कौतुकैकरसिकः सुकविश्वकार / तस्यार्यकर्णनलिनस्य नलायनस्य स्कन्धो महाभरतयाभवदष्टमोऽयम् इति श्री माणिक्यदेवसूरिकृते नलायने अष्टमे स्कन्धे चतुर्थः सर्गः // 4 // समाप्तोऽयं अष्टमः स्कन्धः / // 40 // पदमिव मुदिताया दृष्टसत्वोपसर्ग शाम प्रकटिताचमामात्मना सौख्य All-III III-IIIsle // 41 // PISIIAISEII III AIII // 42 // // 177 //

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