Book Title: Nalayanam
Author(s): Yashovijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 398
________________ नवमे स्कन्धे सर्गः 1 | श्रुतसागरेण दत्ता धर्मदेशना / HISTII IIIST // 178 // इति पृच्छन्तमुर्वीशं समुवाच महामुनिः / शृणु ते कथयिष्यामि सर्वमेतद् यथातथम् // 11 // परमावधिमेदेन केवलज्ञानरूपिणा / मम नाविदितं किश्चिद् लोकालोकेऽपि वर्तते // 12 // पुराभूद् मम्मणो राजा नाम्ना भुवमधीश्वरः / प्रचण्डचरितः श्रीमान् वीरो वीरमतीप्रियः // 13 // केवलं बलवान् दाता युवा धीरोद्धतश्च सः / अनार्यदेशजातत्वात् सम्यग् धर्म विवेद न / // 14 // कदापि स हयारूढः कण्ठार्पितशरासनः / पापर्द्धिरसिकः स्वैरं बभ्राम वनभूमिषु // 15 // इत्युग्रमृगयाभूतग्रहव्यग्रे महीएतौ / अवदत् तीर्थयात्रार्थी सार्थोऽष्टापदवर्त्मनि // 16 // तत्र चित्रपरीधाना नानायानस्थिता नराः। अभूवन् बहवो भव्याः स्तोतव्या राजवन्दिनाम् // 17 // तान् दानदायिनो मुक्त्वा तेषां मध्ये स्थितं मुनिम् / अनीतितटिनीग्राहः स जग्राह महामुनिम् // 18 // न कश्चिदपि तत्रासीत् 1. रक्षाक्षमो जनः / शक्तिरुक्ता समानेषु को बली बलवत्तरे ? // 19 // बलाद् निर्वास्य तं सार्थ सामर्थ्येन महीभुजा / चिरं स ददृशे क्रुद्धशा विषदृशाकृतिः // 20 // तस्य पश्यन् महीशय्या विरुक्षपरुषं वपुः / अहो ! बीभत्स इत्यक्त्वा मुमोच नृपतिः शुनः // 21 // स दन्तैः सारमेयाणां वज्रसारमयैरिव / मुनि विमेत्तुमारेमे कुठारैरिव पादपम् // 22 // स वज्रर्षभनाराचदृढसंहननो मुनिः / विषेहे तद् यथा वेगं शान्तिशीतेन चेतसा // 23 // शापे हतिं हतौ मृत्यु मृत्यौ संयमरक्षणम् / गणयन्तस्तितिक्षन्ते लाममेव हि साधकाः // 24 // FIIII-II VIEI II ISHITS TRIKE आHAI || // 178 //

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