Book Title: Nalayanam
Author(s): Yashovijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 406
________________ नवमे धर्मदेश स्कन्धे सर्गः 4 ilas नान्तरे नलस्य पूर्वभवकथनम् // // 182 // SHIMISSIMIHI-ISIS ISSIO सर्वसङ्गपरित्यागं प्रान्तकाले विधाय तौ / महाव्रतधरौ धीरौ शरीरं विससर्जतुः // 18 // ततः सततसौख्याढये स्वर्गे साधर्म्यवाहिनि / उभौ हैमवते क्षेत्रे जातौ मिथुनधर्मिणौ // 19 // यत्र हेममयी भूमिः पक्षिणो मधुरस्वराः। अच्छशीतानि तोयानि वायवोऽतिसुखावहाः // 20 // पर्यन्ते युग्ममेवैकं तदपत्यं प्रजायते / एकोनाशीत्यहः पश्चात् तद् मुक्ता यान्ति ते दिवम् // 21 // वस्त्रपात्रनिकेतस्रक्शय्याभोज्यासनादिकम् / तेषां कल्पद्रुमा एव सर्व यच्छन्ति वाञ्छितम् // 22 // इति वर्षमयीं चयाँ संपूर्णामनुभूय तौ / महेन्द्रत्रिदिवेऽभूतां देवौ दाम्पत्यशालिनी // 23 // क्षीरडिण्डीरनामानौ वहन्तौ तैजसं वपुः / परस्परमपि प्रेम प्रकामं भजतः स्म तौ // 24 // तत्र पल्याधिकं स्थित्वा सागरोपमसप्तकम् / च्युत्वा च नलभैम्याख्यौ सञ्जातौ दम्पती युवाम् // 25 // तदित्थं यत् त्वया पूर्व मुनिः सार्थाद् वियोजितः / तवापि प्रियया साकं तद्वियोग इहाभवत् // 26 // क्षमितः स त्वया तर्हि नाभविष्यद् मुनिर्यदि / व्यरमिष्यत् तदद्यापि तव किं विरहानलः ? // 27 / / यच्च धन्यभवे दधे छत्रं मुनिवरोपरि / एकच्छत्रमिदं राज्यं तब राजन् ! ततोऽभवत // 28 // यदर्हद्विम्बभालेषु तिलकानि ततान च / सञ्जाता तेन देवीयं भास्वत्तिलकलाञ्छिता // 29 // यच्च पञ्चभवान् यावद् दाम्पत्यमजनिष्ट वाम् / तद्भवान्तरसंस्काराद् युवयोः प्रीतिरद्धता // 30 // तद् वाक्यमिति शृण्वन्तावन्तश्चिन्तापरायणौ / उपपत्रवपुःकम्पो दम्पती तौ मुमूर्च्छतु: // 31 // SITIALI ATHI TITI ISIP // 182 //

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