Book Title: Nalayanam
Author(s): Yashovijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 380
________________ सप्तमे म्कन्धे नलदमयन्त्यो विवादः॥ सर्गः६ sil - SAN // 169 // BII STI ASIA II III II IS तस्यागतवतः शीघ्रं सचिवस्य महात्मनः / संपत्स्यते समग्रोऽयं सुहृदो मे मनोरथः // 27 // इत्युक्त्वा स विनीतात्मा विनीताधिपतिं प्रति / प्रविवेश विशामीशश्चतुःशालं दमस्वसुः // 28 // भूरिभूतभवद्भाविवार्ताव्यतिकरो तदा / भैमी नलाय वृत्तान्तं केशिन्यास्तमचीकथत् // 29 // तेन श्रुतेन राजर्षिविस्मितः स्मितपूर्वकम् / ऊचे परोपकारकव्यापारपरया धिया // 30 // अहो! मे साध्वभूद् द्यूतं राज्यभ्रंशोऽपि साध्वभूत् / वने ससंभ्रमं भ्राम्यन् साधु दष्टोऽस्मि भोगिना // 31 // नो चेत् किमन्यथा सर्पविषज्वालाजलाञ्जलिः / अभविष्यदयं दिव्यो वेषः करगतो मम // 32 // युग्मम् // तदयं दीयते तस्यै शृङ्गारो गारुडो मया / युज्यतां स महाबाहुर्भूयः स्ववलसंपदा // 33 // इति जल्पन् प्रियां प्राप्य केशिन्याः सन्निधौ नृपः / तं यथावस्थितं वेषं ददौ बिलसमुद्नकम् // 34 // केशिनी साञ्जलिर्नम्रा शिरसा प्रतिगृह्यताम् / जजल्पाश्रुकणक्लिन्नकण्ठाध्वस्फुरदक्षरम् स्वामी भर्ता पिता माता भ्राता वा कोऽपि कस्यचित् / सर्वस्थाने युवामेव केवलं मम भूतले // 36 // दयितस्य व्यथां हत्तुं वैताढ्यं प्रति संप्रति / सत्वरौ चरणौ गन्तुं मनः पुनरिह स्थितम् // 37 / / आश्रितान् पूरयेच्छक्या वियुक्तान् योजयेद् मिथः। बद्धान् विमोचयेद् जन्तून् एष धर्मः सनातनः / / 38 // तत् किमत्र बहुक्तेन न मे जिह्वाशतं मुखे / मन एव हि जानाति मदीयं युवयोः कृतम् / / 39 // तदियं याति वैताढ्यं प्रयोक्तुं युवयोर्यशः / विद्याधरपरित्राणात् स्वस्ति वामभयप्रदौ ortan Hil Hi ki lIA II II IIIIIIIII // 169 //

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